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धर्म और दर्शन
औदारिक, वैक्रिय और अाहारक-इन तीनों के पुद्गलों का परस्पर बन्ध नहीं होता, अतएव यहाँ उनके बन्धन की गणना नहीं की गई हैं।
(६) शरीर संघातन नाम-शरीर के द्वारा पूर्वगृहीत और गृह्यमाण पुद्गलों की यथोचित व्यवस्था करने वाला कम। इसके भी पाँच उपभेद हैं- (क) औदारिक शरीर संघातन नाम, (ख) वैक्रिय शरीर संघातन नाम, (ग) आहारक शरीर संघातन नाम, (घ) तेजस शरीर संघातन नाम, (ड) कार्मण शरीर संघातन नाम ।
(७) संहनन नाम-जिसके उदय से अस्थिबन्ध की विशिष्ट रचना हो। इसके छः उपभेद हैं-(क) वज्रऋषभनाराच संहनन नाम, (ख) ऋषभनाराच संहनन नाम, (ग) नाराच-संहनन नाम, (घ) अर्धनाराच संहनन नाम (ङ) कीलिका-संहनन नाम (च) सेवार्त संहनन नाम ।
(८) संस्थान नाम-शरीर की विविध प्राकृतियों का जिसके उदय से निर्माण हो । इसके भी छः उपभेद हैं - (१) समचतुरस्र संस्थान, (२) न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान, (३) सादिसंस्थान नाम, (४) वामन संस्थान नाम, (५) कुब्ज संस्थान नाम, (६) हुण्ड संस्थान नाम।
(९) वर्णनाम- इस कर्म के उदय से शरीर में रंग का निर्माण होता है । इसके भी पाँच उपभेद हैं—(क) कृष्णवर्ण नाम, (ख) नीलवर्ण नाम, (ग) लोहितवर्ण नाम, (घ) हारिद्रवर्ण नाम (ङ) श्वेतवर्ण नाम ।
(१०) गन्ध नाम-इस कर्म के उदय से शरीर के गन्ध पर प्रभाव पड़ता है । इसके दो उपभेद हैं—(क) सुरभि-गन्ध नाम, (ख) दुरभिगन्ध नाम।
(२१) रसनाम-इस कर्म के उदय से शरीर के रस पर प्रभाव पड़ता है। इसके पाँच उपभेद हैं-(क) तिक्त-रस नाम, (ख) कटु रस नाम (ग) कषाय-रस नाम, (घ) आम्ल-रस नाम, (ङ) मधुर-रस नाम ।
(१२) स्पर्श नाम-इस क केर्म उदय से शरीर के स्पर्श पर
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