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________________ धर्म और दर्शन नाम कर्म के भी मुख्य दो भेद हैं- शुभ और अशुभ । १५६ अशुभ नाम पापरूप है और शुभ नाम पुण्यरूप है । ८० नाम कर्म की मध्यम रूप से बयालीस उत्तर प्रकृतियाँ भी होती हैं । १५७ वे इस प्रकार हैं : (१) गतिनाम - जन्म -सम्बन्धी विविधता का निमित्त कर्म । इसके चार उपभेद हैं- (क) नरक गतिनाम, (ख) तिर्यञ्च गतिनाम, (ग) मनुष्य गतिनाम (घ) देवगति नास । (२) जातिनाम - एकेन्द्रियत्व से लेकर पंचेन्द्रियत्व तक का अनुभव कराने वाला कर्म । इसके पांच उपभेद हैं - ( क ) एकेन्द्रिय जातिनाम, (ख) द्वीन्द्रिय जातिनाम, (ग) त्रीन्द्रिय जातिनाम, (घ) चतुरिन्द्रिय जातिनाम, (ङ) पंचेन्द्रिय जाति नाम । 1 (३) शरीर नाम - प्रौदारिक आदि शरीर का निर्माण करने वाला कर्म । इसके पांच उपभेद हैं । (क) श्रदारिक शरीरनाम, (ख) वैक्रिय शरीरनाम, (ग) प्राहारक शरीरनाम, (घ) तैजस शरीर नाम, (ङ) कार्मरण शरीरनाम । १५६. १५७. तह नापि हु कम्मं अगरूवाइ कुणइ जीवस्स । सोहणमसोहणाइ इट्टाणिट्ठाइ लोयस्स || - स्थानाङ्ग २|४|१०५ टीका ( ख ) नवतत्त्व साहित्य संग्रह, अवचूणि वृत्यादिसमेत । नवतत्त्व प्रकरणम् ७४ नामं कम्मं तु दुविहं सुहम पुहंच आहियं । Jain Education International (क) समवायाङ्ग, सम० ४२, ( ख ) प्रज्ञापना २३/२/२६३ (ग) गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्ग निर्माण बन्धनसङ्घातसंस्थान संहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्व्यगुरु लघूपघातपराधातातपोद्योतोच्छ्वासविहा योगतयः प्रत्येकशरीर ससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्तस्थिरादेययशांसि सेतराणि तीर्थकृत्त्वं च । - तत्त्वार्थ सूत्र ८।१२ - उत्तरा० ३३|१३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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