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धर्म और दर्शन
उदय से सर्वविरति रूप श्रमणधर्म की प्राप्ति नहीं होती । १७६ संज्वलन कषाय के प्रभाव से श्रमण यथाख्यात चारित्ररूप उत्कृष्ट चारित्र प्राप्त नहीं कर सकता । गोम्मटसार में भी ऐसा ही उल्लेख मिलता है।
अनन्तानबन्धी चतुष्क की स्थिति यावज्जीवन की, अप्रत्याख्यानी चतुष्क की एक वर्ष की, प्रत्याख्यानी कषाय की चार माह की और संज्वलन कषाय की स्थिति एक पक्ष की है । १३१
जिनका उदय कषायों के साथ होता है या जो कषायों को उत्तजित करते हैं वे नोकषाय हैं ।१४० इन्हें अकषाय भी कहते हैं । १४१ नोकषाय या अकषाय का तात्पर्य कषाय का अभाव नहीं, किन्त ईषत्कषाय है । १४२ नोकषाय के नौ भेद हैं-(१) हास्य, (२) रति,
१३६. सर्वसावधविरति : प्रत्याख्यानमुदाहृतम् ।
तदावरणसंज्ञाऽतस्तृतीयेषु निवेशिता ॥ (ख) प्रत्याख्यानावरणकषायोदयाद्विरताविरतिर्भवत्युत्तमचारित्र लाभस्तु न भवति ।
तत्त्वार्थ सूत्र ८।१० भाष्य १३७. (क) संज्वलनकषायोदयाद्यथारख्यातचारित्रलाभो न भवति ।
-तत्त्वार्थ सूत्र ८१० भाष्य १३८. सम्मत्तदेससयलचरित्तजहक्खादचरणपरिणामे । घादंति वा कषाया चउ सोल असंखलोगमिदा ।।
-गोम्मटसार जीवकाण्ड २८३ १३६. जाजीववरिसच उमासपक्खगा नरयतिरियनर अमरा, सम्माणुसव्वविरई अहखायचरित्तघायकरा ।
प्रथम कर्मग्रन्थ गा० १८ १४०. कषायसहवर्तित्वात्, कषायप्रेरणादपि ।
हास्यादिनवकस्योक्ता नोकषायकषायता ॥ १४१. तत्त्वार्थ राजवार्तिक ८।६।१० १४२. ईषदर्थे नः प्रयोगादीषत्कषायोऽकषाय इति ।
-सर्वार्थसिद्धि का
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