SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मवाद : पर्यवेक्षण ७१ सदृश साता वेदनीय है और जीभ कट जाने के समान असाता वेदनीय है । १५ सात वेदनीय कर्म-आठ प्रकार का है-मनोज्ञ शब्द, मनोज्ञ रूप, मनोज्ञ गन्ध, मनोज्ञ रस, मनोज्ञ स्पर्श, सुखित मन, सुखित वाणी, सुखित काय जिससे प्राप्त हो'१६ । ___ असात वेदनीय भी पाठ प्रकार का है-अमनोज्ञ शब्द, अमनोज्ञ रूप, अमनोज्ञ गन्ध, अमनोज्ञ रस, अमनोज्ञ स्पर्श, दुःखित मन, दुःखित वाणी, दुःखित काय की प्राप्ति जिससे हो । ११० वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति उत्तराध्ययन १८ और प्रज्ञापना११९ ११५. महुलित्तखग्गधारालिहणं व दुहा उ वेयणियं । -प्रथम कर्मग्रन्थ, १२ (ख) तथा वेद्यते ---अनुभूयत इति वेदनीयं, सातं सुखं तद्र पतया वेद्यते यत्तत्तथा, दीर्घत्वं प्राकृतत्त्वात्, इतरद् - एतद्विपरीतम् आह चमहुलित्तनिसियक रवालधार जीहाए जारिसं लिहणं, तारिसयं सुहदुहउप्पायगं मुणह ॥ -ठाणाङ्ग २।४।१०५ टीका ११६. स्थानाङ्ग ८/४८८ (ख) प्रज्ञापना २३।३ ११७. स्थानाङ्ग ८।४८८ (ख) असायावेदणिज्जे णं भंते कम्मे कतिविधे पण्णते ? गोयमा । अट्ठविधे पन्नत्ते, तं जहा-अमरगुण्णा सद्दा, जाव कायदुहया । -प्रज्ञापना २३।३।१५ ११८. उदही सरिसनामाणं, तीसई कोडिकोडीओ। उक्कोसिया ठिई होइ, अन्तोमुहुत्तं जहानिया ॥ आवरणिज्जाण दुण्ह पि वेयणिज्जे तहेव य । अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ।। -उत्तरा० ३३।१६-२० ११६. प्रज्ञापना २३।२।२१-२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy