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कर्मवाद : पर्यवेक्षण
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भगवान् ने उत्तर दिया-कालोदायी, हाँ, होता है।
कालोदायी ने पुनः जिज्ञासा व्यक्त की-भगवन् ! किस प्रकार होता है ?
भगवान् ने रूपक की भाषा में समाधान करते हए कहा-- कालोदायी ! जिस प्रकार कोई पुरुष मनोज, सम्यक् प्रकार से पका हुप्रा शुद्ध, अष्टादश व्यंजनों से परिपूर्ण विषयुक्त भोजन करता है। वह भोजन आपातभद्र-खाते समय-अच्छा होता है, किन्तु ज्यों-ज्यों उसका परिणमन होता है त्यों-त्यों उसमें विकृति उत्पन्न होती है, वह परिणामभद्र नहीं होता। इसी प्रकार प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य (अठारह प्रकार के पाप कर्म) आपातभद्र और परिणामअभद्र होते हैं। कालोदायी, इसी प्रकार पाप कर्म पापविपाक वाले होते हैं।८६
कालोदायी ने निवेदन किया-भगवन् । क्या जीवों के किये हुए कल्याण-कर्मों का परिपाक कल्याणकारी होता है ?
भगवान् ने कहा-हाँ, होता है। कालोदायी ने पुनः तर्क किया-भगवन् ! कैसे होता है ?
भगवान ने कहा-कालोदयी ! प्राणातिपातविरति यावत् मिथ्या दर्शनशल्य विरति आपातभद्र प्रतीत नहीं होती, पर परिणामभद्र होती है । इसी प्रकार हे कालोदायी ! कल्याणकर्म भी कल्याणविपाक वाले होते हैं। १६. अत्थि णं भन्ते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जन्ति ?
हन्ता, अत्थि । कहं णं भंते ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जति ?........कालोदाई ! जीवाणं पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले तस्स णं आवाए भद्दए भवइ तो पच्छा विपरिणममाणे विपरिणममाणे दुरूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमति । एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जति ।
-भगवती ७।१० ८७, अत्थि णं भंते ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा कल्लाणफलविवागसंजुत्ता
कज्जन्ति ?
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