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कर्मवाद : पर्यवेक्षण
अनात्मा होने पर भी इनमें "मैं ही हूँ" ऐसा ज्ञान मिथ्याज्ञान और मोह है। यही कर्म बन्धन का कारण है।७३ वैशेषिक दर्शन भी प्रकृत कथन का समर्थन करता है। सांख्यदर्शन भी बंध का कारण विपर्यास मानता है७५ और विपर्यास ही मिथ्याज्ञान है! योगदर्शन क्लेश को बंध का कारण मानता है और क्लेश का कारण अविद्या है। उपनिषद् भगवद्गीता, और ब्रह्म सूत्र में भी अविद्या को ही बंध का कारण माना है।
७३. न्यायभाष्य ४।२।१ (ख) दुःखजन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानानामुत्तरोत्तरापाये तदनन्तरापायादपवर्गः ।
-न्यायसूत्र १११।२ (ग) तत्त्रैराश्यं रागद्वषमोहान्तर्भावात् ।
-न्यायसूत्र४।१।३ (घ) तेषां मोहः पापीयानामूढस्येतरोत्पत्तः ।
-न्यायसूत्र ४।१६ ७४. प्रशस्तपाद पृ० ५३८ विपर्ययनिरूपण ।।
(ख) प्रशस्तपाद भाष्य, संसारापवर्ग प्रकरण । ७५. सांख्यकारिका-४४-४७-४८ ७६. ज्ञानस्य विपर्ययोऽज्ञानम् ।
-माठर वृत्ति ४४ ७७. अविद्यास्मितारागद्वषाभिनिवेशाः पञ्च क्लेशाः । अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम् ॥
-योगदर्शन २।३।४ अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितंमन्यमानाः। दन्द्रम्यमाणाः परियन्ति मूढा, अन्धेनैव नीयमाना यथाऽन्धाः ॥
-कठोपनिषद् १।२।५ ७६: अज्ञानेनावृतं ज्ञानं, तेन मुह्यन्ति जन्तवः,
ज्ञानेन तु तदज्ञानं, येषां नाशितमात्मनः । xxx तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥
-भगवद्गीता ॥१५६
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