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धर्म और दर्शन
पौद्गलिक और मूर्त है, अतः उसका कारण कर्म भी पौद्गलिक और मूर्त ही होना चाहिए।४६ मूर्त का अमूर्त पर प्रभाव : __ प्रश्न है--कर्म मूर्त है तो उसका प्रभाव अमूर्त प्रात्मा पर कैसे होता है ? उत्तर है -जैसे मदिरा और क्लोरोफार्म का प्रभाव अमूर्त चेतना आदि गुणों पर प्रत्यक्ष देखा जाता है, वैसे ही अमूर्त प्रात्मा पर मूर्तं कर्म का प्राव पड़ता है।४७
उक्त प्रश्न का दूसरा समाधान यह है कि अनन्तकाल से आत्मा कर्म से सम्बद्ध होने के कारण स्वभावतः अमूर्त होते हुए भी संसारी अवस्था में मूर्त है ।४८ इस कारण भी वह कर्म से प्रभावित होता है।४९ जो प्रात्मा कर्ममुक्त हैं, उन्हें कर्म का बन्धन नहीं होता, पूर्व कर्म से बंधा हुआ जीव ही नए कर्मों का बंधन करता है ।५०
गौतम--भगवन् ! दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है ?५१
४६. मुत्तो फासदि मुत्त, मुत्तो मुत्तेण बंधमरणुहवदि, जीवो मुत्तिविरहिदो, गाहदि ते तेहिं उग्गहदि ।
-पंचास्तिकाय १३४ ४७. मुतणामुत्तिमओ उवघाया-ऽणुग्गहा कहं होज्जा ? जह विण्णाणाईणं मइरापाणो-सहाईहिं ।
-विशेषावश्यक, भाष्य गा० १६३७ ४८. अहवा नेगंतोऽयं संसारी सव्वहा अमुत्तोत्ति । जमणाइकम्मसंतइपरिणामावन्नरूवो सो॥
-विशेषावश्यक, भाष्य गा० १६३८ ४६. वण्ण रस पंच गन्धा, दो फासा अट्ट णिच्छिया जीवे । ___णो संति अमुत्ति तदो ववहारा मुत्ति बंधादो ।
--द्रव्यसंग्रह ५०. समिय दुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्ट अणुपरियट्टइ ।
--आचारांग २।६।१०५ ५१. दुःखनिमित्तत्वाद् दुःखं कर्म, तद्वान् जीवो दुःखी ।
-भगवती, टोका ७।१।२३६
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