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कर्मवाद : पर्यवेक्षण
महावीर-गौतम ! दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है, अदुःखी दुःख से स्पृष्ट नहीं होता है। दुःख का स्पर्श, पर्यादान (ग्रहण), उदीरणा, वेदना, और निर्जरा दुःखी जीव करता है, अदुःखी नहीं ।१२
गौतम-भगवन् ! कर्म कौन बांधता है-संयत, असंयत, अथवा संयतासंयत ?
महावीर-असंयत, संयतासंयत और संयत ये सभी कर्म बाँधते हैं ।
तात्पर्य यह है कि जो सकर्म आत्मा हैं वे ही कर्म बांधती हैं, उन्हीं पर कर्म का प्रभाव होता है। कर्म बंध के कारण :
जीव के साथ कर्म का अनादि सम्बन्ध है किन्तु कर्म किन कारणों से बंधते हैं, यह एक सहज जिज्ञासा है। गौतम ने प्रश्न कियाभगवन् ! जीव कर्म बन्ध कैसे करता है ?
भगवान् ने उत्तर दिया-गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म के तीव्र उदय से, दर्शनावरणीय कर्म का तीव्र उदय होता है । दर्शनावरणीय कर्म के तीव्र उदय से दर्शनमोह का उदय होता है। दर्शनमोह के तीव्र उदय से मिथ्यात्व का उदय होता है और मिथ्यात्व के उदय से जीव आठ प्रकार के कर्मों को बाँधता है ।५४
स्थानाङ्ग५५ समवायांग५६ में तथा उमास्वाति ने कर्मबंध के
५२. भगवती ७।१।२६६ ५३. भगवती ६।३ ५४. भंते ! जीवे अट्ट कम्मपगडीओ बंधति ?
गोयमा ! णाणावरणिज्जस्म कम्मस्स उदएणं दरिसणावरणिज्ज कम्म नियच्छति, दरिसणावरणिस्स कम्मस्त उदएणं दंसणमोहणिज्जं कम्म णिगच्छइ, दंसणमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं मिच्छत्त णिगच्छइ, मिच्छत्तणं उदिण्णेणं एवं खलु जीवे अट्टकम्मपगडोओ बंबइ।।
प्रज्ञापना २३११।२८६ ५५. पंच आसवदारा पण्णत्ता,-समवायांग, समवाय ५ । ५६. स्थानाङ्ग ४१८ ।
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