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धर्म और दर्शन
उत्तर है - अनादि का अन्त नहीं होता, यह सामुदायिक नियम है, जो जाति से सम्बन्ध रखता है । व्यक्ति विशेष पर यह नियम लागू नहीं भी होता । स्वर्ण और मिट्टी का घृत और दुग्ध का सम्बन्ध अनादि है, तथापि वे पृथक्-पृथक् होते हैं । वैसे ही आत्मा और कर्म के अनादि सम्बन्ध का अन्त होता है । २६ यह भी स्मरण रखना चाहिए कि व्यक्ति रूप से कोई भी कर्म अनादि नहीं है । किसी एक कर्मविशेष का अनादि काल से आत्मा के साथ सम्बन्ध नहीं है । पूर्वबद्ध कर्म स्थिति पूर्ण होने पर प्रात्मा से पृथक् हो जाते हैं | नवीन कर्म का बन्धन होता रहता है। इस प्रकार प्रवाह रूप से आत्मा के साथ कर्मों का सम्बन्ध अनादि काल से है, २७ न कि व्यक्तिशः । श्रतः अनादि कालीन कर्मों का अन्त होता है, तप और संयम के द्वारा नये कर्मों का प्रवाह रुकता है, संचित कर्म नष्ट होते हैं और आत्मा मुक्त बन जाता है ।
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आत्मा बलवान् या कर्म :
आत्मा और कर्म इन दोनों में अधिक शक्तिसम्पन्न कौन है ? क्या आत्मा बलवान् है या कर्म बलवान है ?
समाधान है - प्रात्मा भी बलवान् है और कर्म भी बलवान है । आत्मा में भी अनन्त शक्ति है और कर्म में भी अनन्त शक्ति है । कभी जीव, काल आदि लब्धियों की अनुकूलता होने पर कर्मों को पछाड़
२६.
द्वयोरप्यनादिसम्बन्धः,
कनकोपल - सन्निभः । २७. यथाऽनादिः स जीवात्मा, यथाऽनादिश्च पुद्गलः द्वयोर्बन्धोऽप्यनादिः स्यात् सम्बन्धो जीव- कर्मणोः ।
२८.
- पंचाध्यायी २०४५, पं० राजमल्ल (ख) अस्त्यात्माऽनादितो बद्धः कर्मभिः कार्मणात्मकैः ।
— लोकप्रकाश ४२४
(ग) आदिरहितो जीवकर्मयोग इति पक्षः ।
खवित्ता पुष्वकम्माई, संजमेण तवेण य । सव्व - दुक्ख पहीणट्ठा, पक्कमंति महेसिणो ॥
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- स्थानाङ्ग ११४१६ टीका
- उत्तराध्ययन २५।४५
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