SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म और दर्शन प्रकृति तथा माया कहा है। बौद्ध दर्शन ने उसे वासना और विज्ञप्ति कहा है ।" सांख्य व योग दर्शन उसे आशय और क्लेश कहते हैं । न्याय और वैशेषिक दर्शन ने उसे धर्माधर्म, संस्कार और दृष्ट कहा है। मीमांसकों ने उसे अपूर्व कहा है ।" ईसा मोहम्मद ने उसे शैतान कहा है । कर्म शब्द के ही ये पर्यायवाची शब्द हैं, जिन्हें दार्शनिकों ने अपने-अपने ग्रन्थों में उट्टङ्कित किया है । कर्म का स्वरूप : और मूसा ४० कर्म का स्वरूप क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर विभिन्न विचारकों विभिन्न दृष्टि से दिया है । (घ) दशाश्रुतस्कन्ध, (ङ) कर्मग्रन्थ प्रथम गा० १ ४. ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य २ ।१ । १४ ५. अभिधर्म कोष, चतुर्थ परिच्छेद । ६. ७. योगदर्शन भाष्य १-५२ - ३।२-१२२-१३ योगदर्शन तत्त्व वैशारदी | योगदर्शन भास्वती टीका । (घ) सांख्यकारिका । (ड) साँख्य तत्त्व कौमुदी । ६. ( ख ) ( ग ) न्याय भाष्य १।१।२ ( ख ) न्यायसूत्र ४। १ । ३-६ ( ग ) न्यायसूत्र १।१।१७ (घ) न्याय मंजरी पृ० ४७१।५०० (ङ) एवं च क्षणभंगित्वात्, संस्कारद्वारिकः स्थितः । कर्मजन्य संस्कारो धर्माधर्मगिरोच्यते ॥ ८. मीमांसा - सूत्र - शावर भाष्य २०११५ ( ख ) तन्त्रवार्तिक २|१५ ( ग ) शास्त्रदीपिका पृ० ८० बाइबिल कुरान शरीफ स Jain Education International - न्यायमंजरी पृ० ४७२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy