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अध्यात्मवाद : एक अध्ययन
चरक के अनुसार अग्निवेश के प्रश्न के उत्तर में पुनर्वसु ने ग्रात्मतत्त्व का निरूपण किया है । १४
छान्दोग्य उपनिषद् में महर्षि नारद और सनत्कुमार का संवाद है । सनत्कुमार के पूछने पर नारद ने कहा -- वेद, पुराण, इतिहास आदि सभी विद्यानों का अध्ययन करने पर भी प्रात्मस्वरूप न पहचानने से मैं शोक-ग्रस्त हूँ, ग्रतः आत्मज्ञान प्रदान कीजिये, और चिन्ताओं से मुक्त कीजिये ।'
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बृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्क्य ऋषि से मैत्रेयी ने भी आत्मविद्या का ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा व्यक्त की । १६
उपनिषद् के ऋषियों ने कहा है-- आत्मा ही दर्शनीय है, श्रवणीय है, मननीय है और ध्यान किये जाने योग्य है । ५७ मनुस्मृति के रचियता आचार्य मनु कहते हैं - 'सब ज्ञानों में आत्म-ज्ञान ही श्रेष्ठ है । सभी विद्याओं में वही परा विद्या है, जिससे मानव को अमृत (मोक्ष) प्राप्त होता है । ५८
ब्रह्मप्राप्तौ
५४.
५५.
५६.
५७.
५८.
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विरजोऽभूद् विमृत्यु -
रन्योऽप्येवं यो विदध्यात्ममेव ॥
इत्यग्निवेशस्य वचः श्रुत्वा मतिमतां वरः । सर्वं यथावत् प्रोवाच प्रशान्तात्मा पुनर्वसुः ||
- चरक संहिता, शरीर स्थान, श्र० १, श्लो० १५ छान्दोग्योपनिषद्, प्रपाठक ७ खण्ड १ येनाहं नामृतास्यां किं तेन कुर्याम् ? तदेव भगवान् वेद तदेव मे
ब्रूहि ॥
-- बहदारण्योपनिषद् आत्मा वारे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः ।
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सर्वेषामपि चैतेषामात्मज्ञानं परं स्मृतम् । तद्धयग्रयं सर्वविद्यानां प्राप्यते ह्यमृतं ततः ।।
कठोपनिषत् ६।१८
- बृहदारण्योपनिषद् २।४।५
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- मनुस्मृति श्र० १२
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