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धर्म और दर्शन
जैसे दीपक को एक घड़े के नीचे रख दिया जाय तो उसका प्रकाश घड़े में समा जाता है। उसी दीपक को यदि किसी विशाल कमरे में रख दें तो वही प्रकाश फैलकर उस कमरे को व्याप्त कर लेता है और यदि खुले आकाश में रख दें तो और भी अधिक क्षेत्र को अवगाहन कर लेता है, उसी तरह प्रात्मप्रदेशों का संकोच और विस्तार होता है । यह अनुभवसिद्ध है कि शरीर में जहाँ कहीं चोट लगती है वहाँ सर्वत्र दुःख अनुभव होता है। शरीर से बाहर किसी भी वस्तु को काटने पर दुःख अनुभव नहीं होता। यदि शरीर से बाहर आत्मा होता तो अवश्य ही दुःख होता; अतः प्रात्मा सर्वव्यापी न होकर देहप्रमाण ही है ।२६ __गौतम ने जिज्ञासा व्यक्त की-भगवन् । जीव संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त है ? भगवान् ने समाधान किया-गौतम ? जीव अनन्त हैं ।२७ ____ जीवों की संख्या कभी न्यूनाधिक होती है या अवस्थित रहती है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान महावीर ने कहा-गौतम ! जीव कभी कम और कभी अधिक नहीं होते किन्तु अवस्थित रहते हैं ।२४ अर्थात् जीव संख्या की दृष्टि से सदा अनन्त रहते हैं ।२९ अनन्त होने
२६: सदेहपरिणामो।
-द्रव्यसंग्रह जीवदव्वा णं भन्ते ! किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अरणंता।
-भगवती २५॥२१७१६ (ख) के अणंता लोए ? जीवच्चेव अजीवच्चेव ।
-ठाणाङ्ग २।४।१५१ २८. भन्ते त्ति भगवं गोयमे जाव एवं वयासी-जीवाणं भन्ते ! किं वड्ढन्ति
हायन्ति, अवट्ठिया? गोयमा ! जीवा णो वड्ढंति नो हायन्ति अवट्ठिया। जीवाणं भन्ते केवइयं कालं अवट्ठिया (वि) ? सव्वद्ध ।
-भगवती शा२२१ २६. दव्वओ णं जीवत्यिकाए अणंताई जीवदव्वाई।
-भगवती २।१०।११७
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