SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१ अध्यात्मवाद : एक अध्ययन हल्का है, न भारी है । क्योंकि लघुता गुरुता जड़ के धर्म हैं ! वह न स्त्री है, न पुरुष है, १४ क्योंकि ये शरीराश्रित उपाधियां हैं। वह अनादि है, अनिधन है, अविनाशी है, अक्षय है, ध्रुव और नित्य है ।" वह पहले भी था, अब भी है और भविष्य में भी रहेगा; " तीनों कालों में भी वह जीव रूप में ही विद्यमान रहता है । जीव कभी जीव नहीं होता" लोक में जीव और प्रजीव शाश्वत है ।" आत्मा १४. १५. १६. १७. (ख) जीवत्थिकाए गं अवन्ने, अगंधे, अरसे, अफासे, अरूवी.... भावतो अवन्ने, अगन्धे, अरसे, अफासे, अरूवी, --स्थानाङ्ग ५।२।५३० (ग) जीवत्थिकाए गं भंते ! कतिवन्ने, कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे ? गोमा ! अवणे जाव अरूवी । - भगवती २०११० से ण दीहे, ण हस्से, ण वह े, ण तसे, ण चउरंसे, ण परिमंडले, ण किण्हे, ण णीले, ण लोहिए, ण हालिद्द े, ण सुक्किल्ले, ण सुरहिगन्धे, ण दुरहिगन्धे, ण तित्त े, ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे, ण कक्खडे, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण णिद्ध े, ण लुक्खे, ण काऊ, ण रूहे, ण संगे, ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अन्नहा, परि सण्णे | जीवो अणाइअनिधनो अविणासी अक्खओ धुओ णिच्चं । - श्राचारांग ३|१।३३१ -भगवती कालओ ण कयाइ णासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइत्ति भुवि भवइ य भविस्सइ य धुव णितिए सासए अक्खए अव्वए अट्टिए णिच्चे | ठाणाङ्ग ५।३।५३० (ख) भगवती १।४।४१ ण एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जं जीवा अजीवा भविस्सन्ति अजीवा वा जीवा भविस्सन्ति । १८. के सासया लोए ? जीवच्चेव अजीवच्चेव । Jain Education International -ठाणाङ्ग १०।१।६३१ -ठाणाङ्ग २।४।१५१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy