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अध्यात्मवाद : एक अध्ययन
उपयोग ही उसका मुख्य लक्षण है। उपयोग शब्द ज्ञान और दर्शन का संग्राहक है। चेतना के बोधरूप व्यापार को उपयोग कहते हैं। वह दो प्रकार का है-(१) साकार उपयोग (२) और अनाकार उपयोग । साकार उपयोग ज्ञान है और अनाकार उपयोग दर्शन है । जो उपयोग पदार्थों के विशेष धर्म का (जाति, गुण, क्रिया आदि का) बोध कराता है वह साकार उपयोग है और जो सामान्य सत्ता का बोध कराता है वह अनाकार उपयोग है । यों आत्मा में अनन्त गुण पर्याय हैं किन्तु उन सभी में उपयोग ही प्रमुख और असाधारण है। वह स्व-पर प्रकाशक होने से अपना तथा दूसरे द्रव्य, गुण, पर्यायों का ज्ञान करा सकता है । सुख-दुःख का अनुभव करना, अस्ति-नास्ति को जानना, यह सब उपयोग का ही कार्य है । उपयोग जड़ पदार्थों में नहीं होता क्योंकि उनमें चेतना शक्ति का अभाव है। ___ आत्मा को ज्ञानस्वरूप कहा है। इसका अर्थ यह नहीं कि वह ज्ञान के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है, इसमें दर्शन भी है, आनन्द भी है,
७. उवओगलक्खणेणं जीवे ।
-भगवती १३।४।४८० (ख) गुणओ उवओगगुणो।
-ठाणाङ्ग ५३१५३० (ग) जीवो उवओगलक्खणो।
-उत्तराध्ययन २८।१० (घ) उवओगलक्खणे जीवे ।
-भगवती २०१० (ङ) उपयोगो लक्षणम् ।
-तत्त्वार्थ सूत्र राम (च) जीवो उवओगमओ अमुत्ति कक्षा सदैहपरिमाणो । भोत्ता संसारत्थो, सिद्धो सो विस्ससोड्ढगई।
-द्रव्य संग्रह : नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ८. आया भंते ! नाणे अन्नाणे ? गोयमा आया सिय नाणे, सिय अन्नाणे, रणाणे पुण नियमं आया।
-भगवती १६ । ३
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