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अध्यात्मवाद : एक अध्ययन
भारतवर्ष सदैव अध्यात्म-विद्या की लीलाभूमि रहा है। प्रतापपूर्ण प्रतिभासम्पन्न विज्ञों ने अध्यात्म क्षेत्र में जिस घिरन्तन सत्य का साक्षात्कार किया, उसकी प्रभास्वर रश्मिमाला से विश्व का प्रत्येक भूभाग आलोकित है। भारतीय इतिहास व साहित्य प्रस्तुत कथन का ज्वलन्त प्रमाण है कि आध्यात्मिक गवेषणा, अन्वेषणा और उसका सम्यक् आचरण ही भारत के सत्य-शोधी साधकों के जीवन का एकमात्र अभिलषित लक्ष्य रहा है। आध्यात्मिक उत्क्रान्ति के द्वारा ही भारत ने विश्व का नेतृत्व किया और विश्वगुरु के महत्त्वपूर्ण पद से अपने को समलंकृत किया।
भारतीय संस्कृति की समुज्ज्वल विचारधाराएं विवध रूपों व रंगों में व्यक्त हुई हैं, जिनकी गणना करना असम्भव न सही, कठिन अवश्य है । तथापि यह निर्विवाद है कि जैन, बौद्ध और वैदिक ये तीनों धाराएँ ही उनमें प्रमुख हैं । इन त्रिविध धाराओं में ही प्रायः अन्य सभी धाराएँ अन्तहित हो जाती हैं। उनमें अध्यात्म विद्या की गरिमा का जो मधुर गान गाया गया है वह भौतिक-भक्ति के युग में पले-पुसे इन्सान को भी विस्मय से विमुग्ध कर देता है । विमुग्ध ही नहीं, जो मानव भौतिकता की चकाचौंध में प्रतिपल, प्रतिक्षण बहिष्टा बनते जा रहे हैं, जिन्हें अन्तर्दर्शन का अवकाश नहीं है, आत्ममार्जन की चिन्ता नहीं है, अन्तरर्तम की परिशुद्धि और परिष्कृति का उद्देश्य जिनके सामने नहीं है, केवल बहिर्दर्शन ही जिनके जीवन का परम और चरम ध्येय है, उन्हें भी प्रस्तुत संगीत एक बार तो आत्मदर्शन की पवित्र प्रेरणा प्रदान करता ही है।
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