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धर्म और दर्शन
गई है। विभिन्न वर्गों के लिए धर्म की विविध श्रेरिणयां प्रदर्शित की गई हैं, पर विस्तार भय से यहां उनका उल्लेख नहीं किया जा सकता। धर्म और दर्शन
धर्म और दर्शन का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । यह कहना भी अत्युक्ति न होगा कि धर्म और दर्शन एक सिक्के के दो बाजू हैं । मानव जीवन के साथ जैसे धर्म का सम्बन्ध है वैसे ही दर्शन का भी । धर्म प्राचारपक्ष है, दर्शन विचारपक्ष है। दर्शन क्या है ? ___दर्शन का सामान्य प्रर्थ दृष्टि है। प्रस्तुत दृष्टि को अंगरेजी भाषा में विज़न (Vision) कहते हैं। साधारणतः प्रत्येक व्यक्ति, जिसे नेत्र प्राप्त हैं, देखता ही है, मगर यहाँ पर वह साधारण दृष्टि विवक्षित नहीं है। दर्शन का सही अर्थ दिव्य दृष्टि है, जिसके द्वारा तत्त्व का साक्षात्कार होता है।
दर्शन मानव-मस्तिष्क की बौद्धिक उपज कहा जाता है। इस कथन में आंशिक सत्य है, किन्तु पूर्ण सत्य नहीं। जगत् में अनेक दर्शन ऐसे भी हैं जो मानव-मस्तिष्क के चिन्तन-व्यायाम से उद्भूत हैं, किन्तु अल्पज्ञ का मस्तिष्क, चाहे जितना भी उर्वर क्यों न हो, तत्त्व के सम्पूर्ण स्वरूप का स्पर्श नहीं कर सकता । मस्तिष्क की दौड़ की एक सीमा है। उसमें सीमित सत्य ही समा सकता है, किन्तु जब मनुष्य अति विश्वास का शिकार होता है और अपनी अक्षमता को स्वीकार न करके अपने आपको सर्वसमर्थ समझ बैठता है तो वह अपने द्वारा दृष्ट, अपूर्ण सत्य को पूर्ण समझ लेता है। उसे यह मालूम नहीं होता कि मैंने जो कुछ देखा, जाना या समझा है। उससे प्रागे भी बहुत कुछ है । वह उन अन्धों की टोली का ही एक सदस्य बन जाता है जो हाथी के एक-एक अंग को ही परिपूर्ण हाथी समझकर आपस में झगड़ने लगते हैं।
१८. दृश्यतेऽनेनेति दर्शनम् ।
-सर्वदर्शन संग्रह टीका
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