________________
धर्म का प्रवेशद्वार : दान
२१५
देश काल का विचार किये विना अपात्र को दिया जाता है वह तामस दान है। __ जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परम्पराओं में विविध दृष्टियों से दान के अनेक भेद प्रभेद किये गये हैं। विस्तार भय से तथा अनावश्यक होने से उन सभी का उल्लेख यहाँ नहीं किया जा रहा है। संक्षेप में तीनों ही परम्पराओं ने एक स्वर से अन्नदान, अभयदान और ज्ञानदान के महत्त्व को स्वीकार किया है और उनका विस्तार से निरूपण भी किया है। अन्नदान: ___ जैनागमों की दृष्टि से पुण्य के नौ प्रकारों में 'अन्नपुण्य' सर्व प्रथम है।" इसका कारण यह है कि क्षुधा के समान कोई वेदना नहीं है ।८९ बाईस परीषहों में क्षुधा परीषह प्रथम है ।° श्रमणों को दिये जाने वाले दानों में भी अन्नदान सर्व प्रथम है।१ भोजनदान देने से तीनों ही दान दिये हुए हो जाते हैं ।+
८७. अदेशकाले यदानमपात्रेभ्यश्च दीयते । असत्कृतमवज्ञातं, तत्तामसमुदाहृतम् ॥ .
-भगवद्गीता १७.२२ णवविहे पुण्णे पं० त० अण्ण पुण्णे, पाणपुण्णे, वत्थपुष्णे, लेणपुण्णे, सयणपुण्णे, मणपुण्णे, वयपुण्णे, कायपुण्णे, नमोक्कारपुण्णे ।
-स्थानाङ्ग सूत्र, अ० ६ सू० ६७६ ८९. खुहासमा नत्थि वेयणा ।
-गौतम कुलक १०. (क) समवायांग २२
(ख) भगवती शतक ८ उ० ८ पृ० १६१ (ग) उत्तराध्ययन अ० २
(घ) तत्त्वार्थसूत्र ६-८।१७ ६१. देखिए टिप्पण नं० ६७ से ८१ तक । + भोयणदाणे दिण्णे तिण्णि वि दाणाणि होति दिण्णाणि ।
-कार्तिकेयानुप्रक्षा ३६३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org