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धर्म और दर्शन
संयुक्तनिकाय में महात्मा बुद्ध ने कहा है- "एक अन्न ही है, जिसे सभी चाहते हैं । देवता हो या मानव, भला ऐसा कौन सा प्राणी है जिसे अन्न प्यारा न हो ? जो अन्न का श्रद्धा से दान करते हैं, अत्यन्त प्रसन्न चित्त से, उन्हीं को वह अन्न प्राप्त होता है । इस लोक में और परलोक में भी
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महात्मा बुद्ध से पूछा गया-भगवन् ! क्या देने वाला बल देता है ? बुद्ध ने कहा - अन्न देने वाला बल देता है ? 33
अन्यत्र भी महात्मा बुद्ध ने कहा है - 'जो मनुष्य भोजन देता है वह लेने वाले को चार वस्तुएं देता है-वर्ण, सुख, बल और प्रयु । उसका फल देने वाले को देवायु, दिव्यवर्णं, दिव्य सुख, और दिव्य बल'४ के रूप में प्राप्त होता है ।
वैदिक संस्कृति के अमरगायक व्यास कहते हैं - " अन्न ही मनुष्यों का प्रारण है, उसी से प्राणी उत्पन्न होते हैं । सारा संसार अन्न के सहारे टिका है । अतः अन्नदान सब से अधिक प्रशंसनीय है । जो व्यक्ति दुर्बल, विद्वान्, जीविकाहीन एवं दुःखी व्यक्ति को अन्न देकर उसकी क्षुधा मिटाता है, उसके समान संसार में कोई नहीं । सब दानों में अन्नदान श्रेष्ठ है, अतः धर्म की इच्छा रखने वाले मनुष्य 'को सरल भाव से अन्न का दान करना चाहिए ।"
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संयुक्त निकाय प्रथम भाग, अन्न सुत्त १|५|३
संयुक्त निकाय प्रथम भाग, कि ददं सुत्त ११५१२ अंगुत्तरनिकाय ४८ प्राणान्न मनुष्याणां तस्माज्जन्तुश्च जायते । अन्ने प्रतिष्ठितो लोकस्तस्मादन्न प्रशस्यते ॥
- महाभारत, अनुशासन, श्र० ११२ इलो० ११ कृशाय कृतविद्याय वृत्तिक्षीणाय सोदते । अपहन्यात् क्षुधां यस्तु, न तेन पुरुषः समः ॥
- महाभारत अनुशासन पर्व, श्र० ५६ श्लो० ११ सर्वेषामेव दानानामन्नं श्र ेष्ठमुदाहृतम् । पूर्वमन्त्र प्रदातव्यमृजुना धर्ममिच्छता ।
- महाभारत अनुशासन पर्व, अ० ११२ इलो० ११०
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