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________________ २१४ धर्म और दर्शन (१) दायक द्वारा दान विशुद्धि, (२) दान पात्र द्वारा दान विशुद्धि, (३) दायक और दानपात्र दोनों द्वारा दान विशुद्धि, (४) दायक और दानपात्र दोनों द्वारा दान विशुद्धि । सिंह सेनापति के प्रश्न के उत्तर में महात्मा बुद्ध ने कहा-दान से लोक में चार लाभ प्राप्त होते हैं-(१) दाता लोकप्रिय होता है (२) सत्पुरुषों का संसर्ग प्राप्त होता है (३) कल्याणकारी कीर्ति प्राप्त होती है। (४) किसी भी सभा में वह विज्ञ की तरह जा सकता है और परलोक में स्वर्ग में जाता है । यह अदृष्ट लाभ है। 3 कालदान (?) के भी चार भेद बताये हैं। (१) आगन्तुक को, (२) जाने वाले को (३) ग्लान को, (४) दुर्भिक्ष में।४ गीता में दान के सात्विक, राजस और तामस ये तीन भेद किये हैं। कर्तव्य बुद्धि से जो दान देश, काल और पात्र का विचार करके अपना उपकार न करने वाले व्यक्ति के लिए दिया जाता है वह सात्विक दान है। जो दान उपकार के बदले में अथवा फल पाने की इच्छा से दिया जाता है और जिसके देने से मन में कुछ क्लेश होता है वह राजस दान है।८६ जो दान विना सत्कार किये, अथवा तिरस्कारपूर्वक, - ८३. अंगुत्तर निकाय ५॥३४ ८४. अंगुत्तर निकाय ५२३६ ८५. दातव्यमिति यद्दानं, दीयतेऽनुपकारिणे । देशे काले च पात्रे च, तद्दानं सात्विकं विदुः ॥ --भगवद्गीता १७।२० ८६. यत्तु प्रत्युपकारार्थ, फलमुद्दिश्य वा पुनः । दीयते च परिक्लिष्टं, तद्दानं राजसं स्मृतम् ।। -भगवद्गीता प्र० ११ । २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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