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________________ २०८ धर्म और दर्शन स्थानाङ्ग में भावना आदि के भेद की दृष्टि से दान के दश भेद बताये हैं । ४९ (१) अनुकम्पादान-दीन, अनाथ, दरिद्र, दुःखी, रोगी, शोकग्रस्त प्राणियों पर अनुकम्पा करके देना ।५० (२) संग्रहदान-अभ्युदय या आपत्ति के अवसर पर सहायता हेतु देना। यह दान अपने स्वार्थ के लिए दिया जाता है, अतः वह मोक्ष का कारण नहीं है । (३) भयदान- राजा, मंत्री, पुरोहित, पुलिस प्रभृति के भय से देना ।५२ (४) कारुण्यदान-पुत्र आदि स्वजन के वियोग से व्यथित होकर उसके नाम से देना । जिससे उसका परभव सुधर जाय । ४६. दसविहे दाणे पण्णत्ते तं जहा अणुकंपा संगहे चेव,भये कालुणिते ति य । लज्जाते गारवेणं च, अधम्मे पुण सत्तमे ।। धम्मे य अट्ठमे वृत्त, काहीति त कतंति त ॥ -स्थानाङ्गप्र० १० सू० ७४५ ५० कृपणेऽनाथदरिद्र, व्यसनप्राप्ते च रोगशोकहते ।। यद्दीयते कृपार्थादनुकम्पा तद्भवेद्दानम् ॥ -स्थानाङ्ग १०।३ सू० ७४५ टीका अभ्युदये व्यसने वा, यत् किञ्चिद्दीयते सहायतार्थम् । तत्संग्रहतोऽभिमतं, मुनिभिर्दानं न मोक्षाय ॥ -स्थानाङ्ग १०१३ सू० ७४५ टीका ५२. राजारमपुरोहितमधुमुखमावल्लदण्डपाशिषु च ।। यद्दीयते भयात्तिद्भयदानं बुध यम् । -स्थानाङ्ग १०३, सू० ७४५ टीका कारुण्यं शोकस्तेन पुत्रवियोगादिजनितेन तदीयस्यैव तल्पादेः स जन्मान्तरे सुखितो भवत्विति वासनातोऽन्यस्य वा यद्दानं तत्कारुण्यदानं, कारुण्यजन्यत्वाद् वा दानमपि कारुण्यमुक्तम् उपचारादिति ॥ स्थानाङ्ग उ० ३ । सू० ७४५ टी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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