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धर्म और दर्शन श्रद्धा से अर्पण कीजिए ।८ दान से ही अमरपद प्राप्त होता है।३९ __दान के विज्ञापन की आवश्यकता नहीं है। किसान खेत में जो बीज बोता है, उसे खुला नहीं रखता, मिट्टी से ढंक देता है। यदि बीज मिट्टी से ढंकता नहीं है तो उससे अंकुर नहीं उगता । वह नष्ट हो जाता है। वैसे ही दान को भी लँकिए, उसे गुप्त रहने दीजिए, उसका विज्ञापन न कीजिये। एक विचारक ने कहा है, 'जो मानव अपने हाथ से दान देता है वह देता नहीं, पर अपने हाथ से इकट्ठा करता है । एक अन्य पाश्चात्य विचारक ने लिखा है कि-बहुत अधिक देने से उदारता सिद्ध नहीं होती, किन्तु आवश्यकता के समय सहायता प्रदान करना ही सच्ची उदारता है।४१ दरिद्रों को दीजिये, ऐश्वर्यसम्पन्न व्यक्तियों को देना तो स्वस्थ और प्रसन्न व्यक्ति को औषध प्रदान करने के समान है ।४२ गंजे व्यक्ति को जिस प्रकार कंघी देना, और अन्धे व्यक्ति को दर्पण देना निरर्थक है, वैसे ही अनावश्यक और अनुपयोगी वस्तुओं का दान भी निरर्थक है। ज्ञातृधर्म कथा का प्रसंग है कि-नागश्री ने दीर्घ तपस्वी धर्म रुचि अनगार को कडुए तुम्बे का शाक दिया, और कठोपनिषद् का प्रसंग है कि वाजिश्रवा ऋषि
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३८. दानं ददन्तु सद्धाय, सीलं रक्खन्तु सव्वदा ।
भावनाभिरुता होन्तु, एतं बुद्धान सासनं ।।-महात्मा बुद्ध ३६. दक्षिणावन्तो अमृतं भजन्ते । -ऋग्वेद
The hand that gives gathers. ' Liberality does not consist in giving much, but in
giving at the right moment. ४२. दरिद्रान् भर कौन्तेय ! मा प्रयच्छेश्वरे धनम् । व्याधितस्यौषधं पथ्यं, नीरुजस्य किमौषधम् ?
-हितोपदेश सएणं सा नागसिरी माहणी धम्मरुई एज्जमाणं पासइ२ तस्स सालइ यस्स""एडणट्ठयाए (निसरणिठ्याए) हट्टतुट्ठा उठाए उ8 इ२ जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागछइ,२ तं सालइयं"..."धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गंहंसि सव्वमेव निस्सिरइ
-ज्ञातृधर्म कथा, अध्ययन १६ वा
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