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धर्म का प्रवेशद्वार : दान
रहे हों और आपको अपना भाग नहीं मिलता है, तो आप कितने बेचैन होते हैं ? किन्तु समाज का भाग, जो आपके पास है, उसे देने के लिए बेचैन होते हैं या नहीं ?
भारतीय संस्कृति के एक मननशील मेधावी सन्त ने कहा - ' जो अर्पण करता है वह देवता है ' देवै सो देवता और लेवें सो लेवता ।' सूर्य निरन्तर प्रकाश देता है अतः वह देवता है । जिसमें निरन्तर अर्पण करने की शक्ति है वह देव है । मराठी भाषा में 'दान' को देव कहा है । जिसके अन्तर में देवत्व विद्यमान है वह देता है ।
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प्राचीन युग में प्राचार्य दीक्षान्त भाषण में शिष्य से कहते थे" वत्स ! तुम गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिए जा रहे हो। तुम्हारे यहाँ कोई अतिथि आये तो श्रद्धा से देना, अश्रद्धा से न देना प्रसन्नता से देना, नम्रता से देना, पर भय से न देना, सहानुभूति श्रौर प्रेम से देना । 3 पद्मपुराणकार ने कहा-यदि शत्रु भी घर पर आजाय तो उसे भी अर्पण करो । किसी भी वस्तु के लिए इन्कार न करो । ३६ जो दिया जाता है वह मीठा होता है और जो लिया जाता है वह कडुवा होता है । वृक्ष अपनी इच्छा से जो फल देता है वह कितना मधुर होता ? पर जो बलात् लिया जाता है उसमें मधुरता कहाँ होती है ?
दान एक वशीकरण मंत्र है, जो सभी प्राणियों को मोह लेता है, पर को भी अपना बना लेता है। अतः प्रतिदिन दान दीजिए, ३७
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श्रद्धया देयम् ! श्रश्रद्धयाऽदेयम् ! श्रिया देयम् । ह्रिया देयम् ! भियाऽदेयम् ! संविदा देयम् ॥
शत्रावपि गृहायाते नास्त्यदेयं तु किंचन ।
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तैत्तिरीय उपनिषद् १ । ११
- पद्मपुराण
दानेन सत्वानि वशीभवन्ति, दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् । परोऽपि बन्धुत्वमुपैतिदानात्तस्माद्धि दानं सततं प्रदेयम् ॥
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-- धर्मरत्न
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