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________________ धर्म का प्रवेशद्वार : दान २०३ प्राचार्य श्री हेमचन्द्र के प्रवचनपीयूष का पानकर परमाहत का विरुद पाया और असहायों के भोजन, वस्त्र के निमित्त सत्रागार की स्थापना की। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने एक मठ का भी निर्माण कराया था ।२७ जैन श्रावक भामाशाह, जगडूशाह और खेमादेदराणी की दानवीरता किसी से छिपी नहीं है, जिन्होंने राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पण कर दिया था। वे श्रमणोपासक आनन्द की तरह ही समाज के लिए मेढ़ी-स्तम्भ आधार रूप थे, आँख के समान पथ-प्रदर्शक थे, और भोजन के समान आलम्बन रूप थे।२८ यदि आपका स्वधर्मी बन्धु प्रार्थिक दृष्टि से अत्यधिक संकटग्रस्त है, उसे समय पर खाने को नहीं मिल रहा है पहनने को कपड़े नहीं मिल रहे हैं, रहने को झोंपड़ो नसीब नहीं है, उस समय आप यदि उसकी दीनता पर हँसते हैं तो आप भी उसी बादशाह के खानदान के हैं, जो नगर को आग में झुलसता देखकर भी वंशी बजाया करता था। यदि आप उसकी स्थिति को देखकर भी उधर ध्यान नहीं देते हैं, तो मिट्टी के लौंदे के समान हैं। यदि आप उसे केवल टुकुर-टकुर निहारते हैं तो पशु के समान हैं। यदि आप उसे सहायता देते हैं, उस गिरे हुए को ऊपर उठाते हैं तो मनुष्य हैं, श्रावक हैं। एक पाश्चात्य विचारक ने कहा है-जीवन का अर्थ ही दान है ।२९ प्रार्थनामन्दिर में जाकर प्रार्थना के लिए सौ बार हाथ जोड़ने के बजाय दान के लिए एक बार हाथ खोलना अधिक महत्त्वपूर्ण है । अतः विचार किये बिना देते जाओ।१ हाथ क २७. २८. भइभत्त वेयणेहि वि उलं असणं ४ उवक्खडावेत्ता बहूणं समण माहण-भिक्खुयाणं पंथियपहियाणं पडिलाभेमाणे"." -रायपसेणिय कुमारपाल प्रतिबोध, सोमप्रभाचार्य मेढिभूए पाहारे आलंबणे चक्खुमेढिभूए उपासकवशांग ०१ Life means giving. One hand opened in charity is worth a hundred in Prayer, Give without a thought. २६. ३०. ३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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