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________________ अहिंसा और सर्वोदय १७३ योग साधना के पाठ सोपान हैं। उनमें प्रथम सोपान का प्रथम चरण है अहिंसा ।२० अहिंसा की मंजिल को पूरी किये बिना योग में गति और प्रगति नहीं हो सकती। अहिंसा की साधना से ही स्नेह, सौहार्द और प्रेम का समुद्र ठाठे मारने लगता है। यहाँ तक कि अहिंसक के सन्निकट पहुँचकर हिंसक से हिंसक का भी वैर विस्मृत हो जाता है ।२१ यही कारण है कि तीर्थङ्करों के समवसरण में शेर और बकरी एक स्थान पर बैठते हैं। देवर्षि नारद भक्तों को प्रेरणा देते हैं कि भगवान् के चरणों में अहिंसा, इन्द्रियनिग्रह, दया, क्षमा, शान्ति, तप, ध्यान और सत्य ये आठ प्रकार के पुष्प अर्पित करो। इनमें भी सर्वप्रथम पुष्प अहिंसा है ।२२ जिस प्रकार हाथी के पैर में सब प्राणियों के पैर समा जाते हैं, उसी प्रकार अहिंसा में सब धर्मों के अर्थ व तत्त्व समा जाते हैं। ऐसा जानकर समझकर जो अहिंसा का प्रतिपालन करते हैं वे नित्य अमृत-मोक्ष में वास करते हैं ।२3 १६. यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावंगानि । -पतंजलि, योगदर्शन २।२६ २०. अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ।। -पतंजलि, योगदर्शन २०३० २१. अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरत्यागः । २२. अहिंसा प्रथमं पुष्पं, पुष्पं इन्द्रियनिग्रहः । सर्वभूतदया पुष्पं, क्षमा पुष्पं विशेषतः । शान्तिः पुष्पं तपः पुष्पं ध्यानपुष्पं तथैव च । सत्यं अष्टविधं पुष्पं विष्णोः प्रीतिकरं भवेत् । ---पद्मपुराण २३. यथा नागपदेऽन्यानि पदानि पदगामिनाम् । सर्वाण्येवापि धार्यन्ते पदजातानि कौरे ॥ एवं सर्वहिंसायां धर्मार्थमपि धीयते । अमृतः स नित्यं वसति योऽहिंसा प्रतिपद्यते ॥ -महाभारत १२।२३७।१८।१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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