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________________ १७२ धर्म और दर्शन किया और अन्य बाईस तीर्थङ्करों ने चातुर्याम धर्म का निरूपण किया । १४ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि सर्वत्र अहिंसा को प्रथम स्थान दिया गया है । हिंसा की विशद व्याप्ति में ही सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि व्रतों का समावेश हा जाता है । जहाँ हिंसा है वहाँ पाँचों महाव्रत हैं ।' १५ जैन दर्शन के मनीषी प्राचार्यों ने स्पष्ट किया है कि सत्य आदि जितने भी व्रत हैं वे सभी अहिंसा की सुरक्षा के लिए हैं । ६ अहिंसा धान है और सत्य आदि उसकी रक्षा करने वाले बाड़े हैं । " हिंसा यदि पानी है तो सत्य यदि उसकी रक्षा करने वाली पाल हैं । " १८ १४. १५. मज्झिगमा बावीसं अरहंता भगवंता चाउज्जामं धम्मं पण्णवेंति, तं जहा सव्वातो पाणातिवायाओ वेरमणं, एवं मुसावायाओ वेरमणं, सव्वातो अदिन्नादानाओ वेरमरणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं । --स्थानाङ्गः २६६ अहिंसा - गहणे पंच महव्वयाणि गहियाणि भवंति । संजमो पुण तीसे चेव अहिंसाए उवग्गहे वट्टइ, संपुष्णाय अहिंसाय संजमो वि तस्स वट्टइ | १६. एक्कं चिय एक्कं वयं निद्दिट्ठ सवेहिं पाणाइवायविरमण १७. - दशवेकालिक चूर्णि प्र० प्र० जिणवरेहिं । सव्वसत्तस्स रक्खट्ठा । (ख) अहिंसेषा मता मुख्या स्वर्ग- मोक्ष प्रसाधनी । एतत्संरक्षणार्थ च न्याय्यं सत्यादिपालनम् । (ग) अवसेसा तस्स रक्खट्ठा । अहिंसाशस्य संरक्षणे वृत्तिकल्पत्वात् Jain Education International १८. अहिंसापयसः पालिभूतान्यन्यव्रतानि यत् । सत्यादिव्रतनाम् । - हारिभद्रीयाष्टक १६/५ — पंचसंग्रह - हारिभद्रीयाष्टक १६/५ - योगशास्त्र प्रकाश - २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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