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धर्म और दर्शन
किया और अन्य बाईस तीर्थङ्करों ने चातुर्याम धर्म का निरूपण किया । १४
पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि सर्वत्र अहिंसा को प्रथम स्थान दिया गया है । हिंसा की विशद व्याप्ति में ही सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि व्रतों का समावेश हा जाता है । जहाँ हिंसा है वहाँ पाँचों महाव्रत हैं ।'
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जैन दर्शन के मनीषी प्राचार्यों ने स्पष्ट किया है कि सत्य आदि जितने भी व्रत हैं वे सभी अहिंसा की सुरक्षा के लिए हैं । ६ अहिंसा धान है और सत्य आदि उसकी रक्षा करने वाले बाड़े हैं । " हिंसा यदि पानी है तो सत्य यदि उसकी रक्षा करने वाली पाल हैं । "
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१४.
१५.
मज्झिगमा बावीसं अरहंता भगवंता चाउज्जामं धम्मं पण्णवेंति, तं जहा सव्वातो पाणातिवायाओ वेरमणं, एवं मुसावायाओ वेरमणं, सव्वातो अदिन्नादानाओ वेरमरणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं । --स्थानाङ्गः २६६ अहिंसा - गहणे पंच महव्वयाणि गहियाणि भवंति । संजमो पुण तीसे चेव अहिंसाए उवग्गहे वट्टइ, संपुष्णाय अहिंसाय संजमो वि तस्स वट्टइ |
१६. एक्कं चिय एक्कं वयं निद्दिट्ठ सवेहिं पाणाइवायविरमण
१७.
- दशवेकालिक चूर्णि प्र० प्र० जिणवरेहिं ।
सव्वसत्तस्स रक्खट्ठा ।
(ख) अहिंसेषा मता मुख्या स्वर्ग- मोक्ष प्रसाधनी । एतत्संरक्षणार्थ च न्याय्यं सत्यादिपालनम् ।
(ग) अवसेसा तस्स रक्खट्ठा । अहिंसाशस्य संरक्षणे वृत्तिकल्पत्वात्
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१८. अहिंसापयसः पालिभूतान्यन्यव्रतानि यत् ।
सत्यादिव्रतनाम् ।
- हारिभद्रीयाष्टक १६/५
— पंचसंग्रह
- हारिभद्रीयाष्टक १६/५
- योगशास्त्र प्रकाश - २
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