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आठ
अहिंसा और सर्वोदय
भारतीय चिन्तकों ने जितनी गहराई से अहिंसा के सम्बन्ध में चिन्तन किया है उतना विश्व के अन्य विचारकों ने नहीं। अहिंसा आत्मा का पालोक है, जीवन की पवित्रता है, मन का माधुर्य है, मैत्री का मूलमन्त्र है। स्नेह, सौहाद्र और सद्भावना का सूत्र है। धर्म, संस्कृति, समाज का प्राण है । साधना का पथ है।
हिंसा शब्द हननार्थक हिंसि धातु से बना है । हिंसा का अर्थ है"प्रमत्त योग से दूसरों के प्राणों का अपहरण करना'- दुष्प्रयुक्त मन, वचन या काया के योगों से प्राण व्यपरोपण करना। और अहिंसा का अर्थ है-प्राणातिपात से विरति ।
जैन साहित्य में हिंसा के लिए प्राणातिपात शब्द का प्रयोग हुआ है। इन्द्रियाँ, मन, वचन, काया, श्वासोच्छ्वास और आयु ये प्राण है। प्राणातिपात का अर्थ है प्रारणी के प्रारणों का प्रतिपात करना-जीव से प्राणों का पृथक् करना। जीवों को समाप्त करना
१. प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा ।
-तत्त्वार्थ सूत्र ७१३ २. मणवयणकाएहि जोएहि दुप्पउत्तहिं जं पाणववरोवणं कज्जइ सा हिंसा।
--दशवकालिक, जिनदास चूणि प्र० अध्य० ३. अहिंसा नाम पाणातिवायविरती।
-दशवकालिक, जिनदास चूणि पृ० १५
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