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धर्म और दर्शन
आशय यही है कि तप से शुष्क शरीर में एक अनूठा तपस्तेज दमक उठता है । तप एक प्रकार से शुद्ध की हुई रसायन है। कहा जाता है कि आज के वैज्ञानिकों ने "वायोकेमिष्ट" औषधियों की शोध की है। उनका मन्तव्य है कि शरीर में बारह प्रकार के तत्त्व होते हैं। उन तत्त्वों में से किसी भी एक तत्त्व की न्यूनता होने से शरीर रुग्ण होता है । बारह प्रकार के क्षार तत्त्वों से रोगों को नष्ट कर शरीर को पूर्ण स्वस्थ और मस्त बनाया जा सकता है। तप के भी जो बारह प्रकार हैं, वे "वायो केमिष्ट" औषधियों के समान हैं। इन तपों का शरीर के किस तत्त्व पर कैसा प्रभाव पड़ता है, यह अनुसन्धान का विषय है । तथापि निस्सन्देह कहा जा सकता है कि इनके
आचरण से कर्म रूपी रोग नष्ट होते हैं और प्रात्मा पूर्ण स्वस्थ होता है।
तप श्रमण संस्कृति की आत्मा है। तप और श्रमण संस्कृति के द्वत की मान्यता को मैं मानस की सिकुड़न मानता हूँ। तप संयम की पौध का फलना, फूलना ही श्रमण संस्कृति का विकास है।
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