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धर्म और दर्शन
तामली तापस 3 और पूरण तापस ने उग्र तप किया था, किन्तु प्राभ्यन्तर तप के अभाव में उनके विपुल तप को भगवान् महावीर ने अज्ञानतप कहा है। करोड़ों वर्षों तक अज्ञान-तप करने पर अज्ञानी जितने कर्मों को नष्ट कर पाता है, उतने कर्मों को ज्ञानी कुछ ही समय में नष्ट कर देता है । एतदर्थ ही साधक को बाह्य तप करने के पूर्व आगमों का अध्ययन करना आवश्यक माना है । ६ बाह्य तप क्रियायोग का प्रतीक है और प्राभ्यन्तर तप ज्ञानयोग का । ज्ञान और क्रिया का समन्वय ही मोक्ष का मार्ग है। उपाध्याय यशोविजय जी ने एतदर्थ ही मुनि को बाह्य और आभ्यन्तर तप करने की प्रेरणा दी है। __महात्मा बुद्ध ने मज्झिम निकाय आदि में जैन संस्कृति के तप
७३. भगवती, शतक ३। उद्देश० १ ७४. भगवती, शतक ३ उद्द० २
जं अन्नाणी कम्म खवेइ, बहुयाहि वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ ऊसासमित्तेण ।।
___.-संथार पइन्ना (ख) उग्गतवणण्णाणी जं कम्म खवदि भवहि बहुएहि । तं णाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ अंतोमुहत्तणं ॥
-मोक्ष पाहुड-कुन्दकुन्द ५३ ७६. तए णं से धन्न अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवारणं
थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइएक्कारस अगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे मारणे विहरइ।
-अनुत्तरौपपातिक वर्ग ३ ७७. दोहिं ठाणेहि अणगारे संपन्न अणाइयं अणवदग्गं दीहमद्ध चाउरंतसंसारकंतारं बीइवएज्जा, तं जहा-विज्जाए चेव, चरणेण नेव ।
-स्थानांग २१ (ख) ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः। ७५. मूलोत्तरगुणश्रेणि, प्राज्यसाम्राज्यसिद्धये । बाह्यमाभ्यन्तरं चेत्थं, तपः कुर्यात् महामुनिः ।।
-ज्ञानसार तपप्रष्टक ६ ७६. मज्झिमनिकाय, उपालिसुत्त ५६
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