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श्रमण संस्कृति और तप
स्वाध्याय है ।५९ इसके पांच प्रकार हैं-(१) वाचना, (२) पृच्छा (३) परिवर्तन-स्मरण, (४) अनुप्रेक्षा-चिन्तन, (५) धर्म-कथा।६०
(११) ध्यान-अध्यवसाय को स्थिर करना ध्यान है । चंचल चित्त का किसी एक विषय में स्थिर हो जाना ध्यान है। ध्यान के चार प्रकार हैं-(१) प्रातः, (२) रौद्र, (३) धर्म, (४) शुक्ल ।६२ पात और ५६. "अज्झयणंमि रओ सया"-अज्झयणं सज्झाओ भण्णइ, तंमि सज्झाए सदा रतो भविज्जति ।
-दशवकालिक, जिनदास चूणि २८७ (ख) स्वाध्याये वाचनादौ
-दशवकालिक, हारिभद्रीयटीका २३५ ६०. वायणा पुच्छणा चेव, तहेण परियट्टणा । अगुप्पेहा धम्मकहा, सज्झाओ पंचहा भवे ॥
-उत्तरा० ३०॥३४ (ख) पंचविहे सज्झाए प० तं० वायणा, पुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा, धम्मकहा।
-स्थानाङ्ग ५।३।४६५ (ग) तत्त्वार्थ सूत्र ६।२५ (घ) भगवती २५७०२
औपपातिक ३० ६१. (क) एगग्ग मणसन्निवेसणाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? एगग्गमणसन्निवेसणाए णं चित्तनिरोहं करेइ ।
-उत्तराध्ययन २६२५ (ख) उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् ।
-तत्त्वार्थ सूत्र ६२७ (ग) जं थिरमझवसाण तं झारणं ।
(घ) ठाणाङ्ग ॥३॥५११ टीका ६२. चत्तारि झाणा पं० २० अट्ट झाणे, रोद्द झाणे, धम्मे झारणे, सुक्के झाणे।
-ठाणांग ४।१।३०८
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