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________________ १५६ धर्म और दर्शन (८) विनय-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, आदि सद्गुणों में बहुमान रखना विनय है। विनय के सात प्रकार हैं-(१) ज्ञान का विनय, (२) श्रद्धा का विनय (३) चारित्र का विनय (४) मन-विनय (५) वचनविनय (६) काय-विनय और (७) लोकोपचार विनय ५६ इनके भी फिर अनेक भेद प्रभेद हैं ।५० (९) वैयावृत्य-प्राचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्षक, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु आदि की आहार आदि के द्वारा सेवा करना।५८ (१०) स्वाध्याय-विधिपूर्वक प्रात्म-विकासकारी अध्ययन ५६ (ख) औपपातिक, सम० ३० (ग) स्थानाङ्ग ७३३ (घ) भगवती शतक २५ उ० ७ (ङ) व्यवहार भाष्य गा० ५३ पृ० २० (क) भगवती २५७ (ख) ठाणाङ्ग-५८५ (ग) औपपातिक (ग) धर्म संग्रह अध्ययन ३, व्रतातिचार प्रकरण णाणे दंसणचरणे मणवइकाओवयारिओ विणओ । णाणे पंचपगारो मइणाणाईण सद्दहण ॥ भत्ती तह बहुमाणो तद्दिद्वत्थाण सम्मभावणया । विहिगहणन्भासोवि अ एसो विणओ जिणाभिहिओ ॥ -दशवकालिक ११ हारिभद्रीया वृत्ति में ५७. (क) भगवती २५७ (ख) ठाणाङ्ग ७।३।५८५ (ग) दशव० हारि० वृत्ति० १११ ५८. विशेष विवरण के लिए देखें, लेखक का 'सेवा : एक विश्लेषण' लेख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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