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________________ १५० धर्म और दशन उपनिषद्,२५ गीता,२६ और मनुस्मृति२७ ने भी तप और स्वाध्याय पर पर बल दिया है। किन्तु यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि वैदिक संस्कृति की तपः साधना में और जैन संस्कृति की तपः साधना में महान् अन्तर है। ___जैन संकृति ने तप को दो भागों में विभक्त किया है-एक बाह्य तप और दूसरा आभ्यन्तर तप ।२८ २५. स तपोऽतप्यत । -बृहदारण्यक १।२।६ (ख) तपस्तप्यते बहूनि वर्षसहस्राणि । -बृहदारण्यक ३।८१० (ग) यज्ञेन दानेन तपसा। -बृहदारण्यक ४।४।२२ (घ) तपश्च स्वाध्यायप्रवचने च -तैत्तिरीय उपनिषद् १६१ २६. श्रद्धया परया तप्तं तपः -गीता १७।१७ २७. क्षान्त्या शुद्ध यन्ति विद्वांसो, दानेनाऽकार्यकारिणः । प्रच्छन्नपापा जप्येन तपसा वेदवित्तमाः ।। -मनुस्मृति ५।१०६ (ख) अद्भिर् गात्राणि शुद्ध यन्ति, मनः सत्येन शुध्यति । विद्यातपोभ्यां भूतात्मा, बुद्धिमेन शुध्यति । -मनुस्मृति ५।१०८ (ग) तपश्चरणश्चोग्र : साधयन्तीह तत्पदम् ।। --मनुस्मृति ६७५ (घ) तपो विद्या च विप्रस्य, निःश्रेयसकरं परम् । तपसा किल्विषं हन्ति, विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥ -वहीं १२।१०४ २८. सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरन्भन्सरो तहा । बाहिरो छविहो वुत्तो, एवमभंतरो तवो ॥ ----उत्तरा०३०१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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