SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ धर्म और दर्शन प्रथम व्यक्ति मोक्षमार्ग का देश आराधक है ।५१ दूसरा देश विराधक है ।५२ तीसरा सर्व आराधक है६३, और चौथा सर्व विराधक है।५४ इस चतुर्भङ्गी में भगवान् ने बताया कि कोरा शील कल्याण की एकांगी आराधना है । कोरा ज्ञान भी इसी प्रकार का है । शोल और ज्ञान दोनों ही नहीं हैं तो वह कल्याण की आराधना है ही नहीं। शील और ज्ञान दोनों की संगति है तो वह कल्याण की सर्वाङ्गीण आराधना है ।५५ सम्यग्दर्शन की प्राप्ति चतुर्थ गुणस्थान में हो जाती है। सातवें गुणस्थान तक वह अवश्य ही वह पूर्णता प्राप्त कर लेता है । सम्यग्ज्ञान की पूर्णता तेरहवें में और सम्यक् चारित्र को पूर्णता चौदहवें गुणस्थान में होती है। जब तीनों पूर्ण होते हैं तभी साध्य की सिद्धि होती है, अचिन्त्य अविनाशी मोक्ष पद की प्राप्ति होती है ।५६ पूर्ण विद्या और चारित्र का समन्वय ही मोक्ष है ।५७ ५१. भगवती ८.१० १२. भगवती ८।१० ५३. भगवती ८।१० ५४. भगवती ८।१० ५५. भगवती ८.१० ५६. सदृष्टिज्ञानचारित्रत्रयं यः सेवते कृती। रसायनमिवातयं सोऽमृतं पदमश्नुते ॥ -महापुराण, पर्व ११ श्लोक० ५६ ५७. आहेसु विज्जाचरणं पमोक्खं । -सूत्रकृताङ्ग १।१२।११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy