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________________ सात श्रमणसंस्कृति और तप श्रमण संस्कृति तपः प्रधान संस्कृति है । तप श्रमण संस्कृति का प्राण-तत्त्व है। जीवन की कला है। प्रात्मा की अन्तःस्फूर्त पवित्रता है, जीवन का आलोक है । तप की महिमा और गरिमा का जो गौरवगान श्रमण संस्कृति ने गाया है, वह अनूठा है, अपूर्व है । श्रमण संस्कृति का आधार श्रमण है। जैनागमों में अनेक स्थलों पर'समरण' शब्द व्यवहृत हुआ है, जिसका अर्थ साधु है। 'श्रमरण' शब्द के तीन रूप होते हैं-'श्रमण' 'समन' और 'शमन' । श्रमण शब्द श्रम धातु से निष्पन्न होता है जिसका अर्थ है-श्रम करना। __ दशवकालिक वृत्ति में आचार्य हरिभद्र ने तप का अपर नाम श्रम भी दिया है । श्रमण का अर्थ तपस्या से खिन्न, क्षीण काय तपस्वी किया है । जो व्यक्ति अपने ही श्रम से उत्कर्ष की प्राप्ति करता है वह श्रमण है। १. श्राम्यन्तीति श्रमणाः तपस्यन्तीत्यर्थः । -दशवकालिक वृत्ति २३ २. श्रम तपसि खेदे । ३. श्राम्यति तपसा खिद्यत इति कृत्वा श्रमणः । -सूत्रकृताङ्ग १।१६।१ शोलाङ्क टोका, पत्र २६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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