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साधना का मूलाधार
पूर्ण आस्था रखते हुए अच्छी तरह उन्हीं के अनुरूप आचरण करना True Conduct सम्यक् चारित्र है ।
ज्ञान नेत्र है, चारित्र चरण है । पथ का अवलोकन तो चरण उस प्रोर नहीं बढ़े तो अभीप्सित लक्ष्य की प्राप्ति स्विनाँक ने लिखा है - 'विना चारित्र के ज्ञान शीशे की आँख की तरह है, सिर्फ दिखलाने के लिए और एक दम उपयोगितारहित ।" ज्ञान का फल विरक्ति है । ४८ ज्ञान होने पर भी यदि विषयों में अनुरक्ति बनी रही तो वह वास्तविक ज्ञान नहीं है ।
४८.
४६.
५०.
सम्यक् चारित्र जैन साधना का प्रारण है । विभावगत आत्मा को पुनः शुद्ध स्वरूप में अधिष्ठित करने के लिए सत्य के परिज्ञान के साथ जागरूक भाव से सक्रिय रहना आचार-आराधना है । चारित्र एक ऐसा चमकता हीरा है जो हर किसी पत्थर को घिस सकता है । जीवन का लक्ष्य सुख नहीं, चारित्र है ।" उत्तम व्यक्ति शब्दों से सुस्त और चारित्र से चुस्त होता है ।° बौद्ध साहित्य में सम्यक् चारित्र को सम्यक् व्यायाम कहा है ।
समन्वय :
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र - ये साधना के तीन अंग हैं | अन्य दर्शनकार केवल साधना के एक-एक अंग को प्रमुखता देते हैं - किन्तु जैन दर्शनकार तीनों के समन्वय को । भगवान् श्री महावीर ने चार प्रकार के पुरुष बताए हैं:
एक शीलसम्पन्न है,
दूसरा श्रुतसम्पन्न हैं,
तीसरा शील सम्पन्न है, और श्रुत सम्पन्न है ।
चौथा न शील सम्पन्न है, न
त सम्पन्न है ।
ज्ञानस्य फलं विरतिः
बीचर
कन्फ्यूशियस
श्रुतसम्पन्न नहीं | शीलसम्पन्न नहीं ।
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किया, पर संभव है ।
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