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इस एक का
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यही सर्वोत्कृष्ट धर्म है और ज्ञानों में श्रेष्ठ ज्ञान है परिज्ञान होने पर कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जाता। इस आत्मविद्या के द्वारा राग-द्व ेष की प्रहारिण की जाती है । और यही सर्वोत्तम राजविद्या है | ४२ न्यायदर्शन मिथ्याज्ञान, मोह आदि को संसार का मूल मानता है और सांख्य दर्शन विपर्यय को ।४४ बौद्ध दर्शन विद्या, राग-द्वेष को संसार का प्रधान कारण स्वीकारता है । ४५ जैन दृष्टि से साधना के क्षेत्र में सम्यग्ज्ञान का वही महत्त्व हैं जैसा सम्यग्दर्शन का है। ज्ञान प्रकाशक है । ४६ प्रथम ज्ञान और फिर चारित्र प्रादुर्भूत होता है । ४७
सम्यक् चारित्र :
आत्मस्वरूप में रमण करना और जिनेश्वरदेवों के वचनों पर
३६. (क) अयं तू परमो धर्मः यद्योगेनात्मदर्शनम् ।
४०.
(ख) आत्मज्ञानं परं ज्ञानम् ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यत् ज्ञातव्यमवशिष्यते ।
४१. आन्वीक्षिक्यात्मविद्या, स्यादीक्षणात् सुखदुःखयोः । ईक्षमाणस्तया तत्त्वं, हर्षशोकौ व्युदस्यति ॥
४२. राजविद्याराजगुह्य ं पवित्रमिदमुत्तमम् ।
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४३.
न्यायसूत्र ४।१-३-६
४४. सांख्य कारिका ६४।३
४५.
बुद्ध बचन
४६. णाणं पयासयं ।
४७.
पढमं णाणं तओ दया ।
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धर्म और दर्शन
- याज्ञवल्क्य १ ।११८
- महाभारत, शान्तिपर्व
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- गीता ७।२
- शुक्रनीति १११५२
- गीता हार
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- दशवेकालिक ४
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