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साधना का मूलाधार
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दूसरे शब्दों में कहा जाय तो प्रत्येक द्रव्य का उनकी अनन्त गुण पर्यायों सहित और अपने विशुद्ध आत्मस्वरूप का यथार्थ ज्ञान सम्यग्ज्ञान है ।३२
ज्ञान उस तृतीय नेत्र के समान है जिसके अभाव में जीव शिव नहीं बन सकता, आत्मा भवबन्धनों से विमुक्त नहीं हो सकता। महान् विचारक शेक्सपियर के शब्दों में 'ज्ञान वह पंख है जिससे हम स्वर्ग में उड़ते हैं। 33 कन्फ्यूशियस ने ज्ञान को आनन्दप्रदाता माना है।४ वस्तुतः सम्यग्ज्ञाच ही सच्चे सुख का कारण है । जब तक सम्यग्ज्ञान नहीं होता तब तक विकारों का विनाश होकर विचारों का विकास नहीं होता।
वैदिक दार्शनिकों ने भी सम्यग्ज्ञान को महत्त्व दिया है और उसे 'ब्रह्मविद्या' कहा है । 'अध्यात्मविद्या' ही समस्त विद्याओं की प्रतिष्ठा है। वही उन सब में प्रमुख है । उनको दीपक के समान आलोक दिखाने वाली है।८ और परिपूर्णता प्राप्त करानेवाली है।
३२. जं जह थक्कउ दव, जिय तं तह जाणइ जोजि । अप्पह केरउ भावडउ णाणु सुणिज्जहि सोजि ॥
-परमात्म प्रकाश २०२६ ३३. ज्ञानगंगा, अयोध्याप्रसाद गोयलीय ३४. अमर वाणी ३५. सत्येन लभ्यस्तपसा ह्यष आत्मा, सम्यग्ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम् ।
-मुण्डकोपनिषद् ३६. ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठाम् ।
-मुण्डकोपनिषद् १११ ३७. सर्वेषामपि चैतेषामात्मज्ञानं परं स्मतम् । तद्ध्वग्र यं सर्वविद्यानां प्राप्यते ह्यमृतं ततः ॥
-- मनुस्मृति १२-८५ ३८. प्रदीपः सर्वविद्यानामुपायः सर्वकर्मणाम् । आश्रयः सर्वधर्माणां, शश्वदान्वीक्षिकी मता ॥
-कौटिलीय अर्थशास्त्र ११२
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