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धर्म और दर्शन
रहेगा कि धर्म का मूल वस्तुतः सम्यग् दर्शन ही है, क्यों कि सम्यग्दर्शन के अभाव में दया सही दया नहीं है और विनय सही विनय नहीं है।
सम्यग्दर्शन का अर्थ है विशुद्धदृष्टि । पाश्चात्य विचारक आर० विलियम्स के शब्दों में जिन द्वारा बताए गए मोक्ष मार्ग में श्रद्धा सम्यकत्त्व है।" प्राचार्य वसुनन्दिन् के अनुसार प्राप्त, आगम और तत्त्वपदार्थ इन तीनों में श्रद्धा रखना सम्यक्त्त्व है। पूर्ण ज्ञानी और पूर्ण वीतराग पुरुष प्राप्त कहलाता है । उसकी वाणी आगम और उसके द्वारा उपदिष्ट पदार्थ-तत्त्व हैं ।
श्रावकपंचाचार वृत्ति के अनुसार-तीर्थंकरों के द्वारा उपदिष्ट सत्यों में श्रद्धा सम्यक्त्त्व है।
प्राचार्य हेमचन्द्र के अनुसार-सुदेव, सुगुरु और सुधर्म में श्रद्धा सम्यक्त्व है।
आचार्य कुन्दकुन्द के शब्दों में 'व्यवहार नय से जीवादि तत्त्वों का
४. नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विना न हुति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निवारणं ।
-उत्तराध्ययन २८३० आर० विलियम्सः 'जैन योग', प्रकाशक ओ० यू० प्रेस लन्दन १९६३ पृ० ४१ । अत्तागमतच्चाणं, जं सद्दहणं सुणिमल होइ। संकाइदोसरहियं, तं सम्मत्त मुणेयव्वं ॥
-वसुनन्दिश्रावकाचार गा० ६ ७. सव्वाइ जिणेसरभासिआई, वयणाइ नन्नहा हुति । इअ बुद्धि जस्स मणे सम्मत्तं निच्चलं तस्स ।
-श्रावक पंचाचार वृत्ति, गा० ३ ८. या देवे देवताबुद्धि, गुरौ च गुरुतामतिः । धर्मं च धर्मधीः शुद्धा, सम्क्त्व मिदमुच्यते ।
-योगशास्त्र, प्र० ३।२ श्लोक
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