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पाँच
धर्म का मूल : सम्यग्दर्शन
धर्म का मल क्या है ? यह एक गम्भीर प्रश्न रहा है, और इस प्रश्न का उत्तर विभिन्न दृष्टियों से विभिन्न विचारकों ने दिया है। कहीं पर दया को धर्म का मूल बताया है। कहीं पर विनय को धर्म का मूल कहा है । और कहीं पर दर्शन को धर्म का मूल कहा है। अपेक्षा दृष्टि से सभी कथन सत्य हैं। दया में चारित्रसम्बन्धी सभी नियमों का समावेश हो जाता है। विनय का अर्थ यहाँ नम्रता नहीं किन्तु सदाचार ही है। सदाचार सम्यग्दर्शनमलक होता है। इस प्रकार धर्म के मूल में शब्दभेद होने पर भी प्राशयभेद नहा है । तथापि गहराई से चिन्तन किया जाय तो यह स्पष्ट हुए विना ।
१. दयामूलो भवेद्धर्मो, दयाप्राण्यनुकम्पनम् ।
-महापुराण-जिनसेन २१३२६२ (ख) दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिान ।।
-संत तुलसीदास २. एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो से मोक्खो ।
-दशवकालिक हारा२ कि मूलए धम्मे ? सुदंसणा, विणयमूले धम्मे।
-ज्ञातासूत्र ५ ३. दंसणमूलो धम्मो।
-कुन्दकुन्दाचार्य
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