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धर्म और दर्शन
४०
द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक, इन दो नयों में ही हो जाता है । जिस कोण में द्रव्य की प्रधानता हो वह द्रव्यार्थिक नय कहलाता है और जिसमें पर्याय की मुख्यता हो वह पर्यायार्थिक नय है । जैन साहित्य में नयविषयक अनेक ग्रन्थों का निर्माण हुआ है। अधिक जानकारी के लिए पाठकों को उन ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए। विस्तारभय से यहां अधिक नहीं लिखा गया है ।
४०. व्यासतोऽनेकविकल्पः । समासतस्तु द्विभेदो द्रव्यार्थिकः पर्यायार्थिकश्च ।
- प्रमाणनयतत्त्वालोक श्र० ७१४१५
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