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योगी और प्रयोगी सिद्ध होगा। धर्म और दर्शन जैसे गम्भीर विषय को इतनी सुन्दर भाषा में और इतनी सरल एवं सरस शैली में अभी तक नहीं रखा गया था। आभ्यन्तर सुन्दरता के साथ में पुस्तक की बाह्य सुन्दरता भी प्रशंसनीय है। मणि-काञ्चन का यह संयोग, अध्येताओं के लिए अत्यन्त उपादेय सिद्ध होगा।
धर्म और दर्शन के लेखक हैं--पण्डित रत्न, प्रखर प्रवक्ता, श्रद्धय पुष्कर मुनिजी महाराज के अन्तेवासी शिष्य-श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री, साहित्यरत्न । गुरु से प्राप्त ज्ञान शिष्य में कितना उज्ज्वलतर हो गया है ? यह पुस्तक लिख कर मुनिजी ने जहाँ गुरू से प्राप्त ज्ञान को सफल किया है, वहां अपने अथक परिश्रम से उसे समाज की चेतना के समक्ष बहुत ही व्यवस्था और सजावट के साथ रखने में पूर्णतः सफल हुए हैं। उनकी लेखनी के चमत्कार से सभी परिचित हैं । मुझे आशा से भी बढ़कर विश्वास है, कि भविष्य में वे इससे भी अधिक शानदार कृति भारती के भण्डार में समर्पित करने में सफल रहेंगे।
कांदावाड़ी जैन स्थानक
बम्बई १२-८-३७
-विजयमुनि
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