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करती है, तो विज्ञान मौन हो जाता है । विज्ञान का सम्बन्ध जीवन से कम है - प्रकृति से अधिक । धर्म का सम्बन्ध आन्तरिक जीवन से ही है । धर्म और विज्ञान में मूल भेद यह है, कि धर्म का प्रधान उद्देश्य मुक्ति की साधना है, जबकि विज्ञान का प्रधान उद्देश्य केवल प्रकृति का अनुसन्धान है । विज्ञान में सत्य Truth तो है, पर शिव Good ness और सुन्दर Beauty नहीं है, जब कि धर्म में तीनों हैं - सत्य भी, शिव भी और सुन्दर भी ।
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धर्म और दर्शन में क्या भेद है ? इस सम्बन्ध में, मैं प्रारम्भ में ही लिख क्या और कैसा सोचते हैं ?
चुका हूँ । परन्तु पाश्चात्य विद्वान् इस विषय में
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पाश्चात्य विचारकों को यह मान्यता है, कि धर्म और दर्शन दोनों का विषय सम्पूर्ण विश्व है । दर्शन मनुष्य की अनुभूतियों की युक्तिपूर्ण व्याख्या करके सम्पूर्ण विश्व के आधारभूत सिद्धान्तों की खोज करता है । धर्म भी श्राध्यात्मिक मूल्यों के द्वारा सम्पूर्ण विश्व की व्याख्या करने का प्रयास करता है । धर्म और दर्शन में दूसरी समता यह है, कि दोनों मानवीय ज्ञान की योग्यता में विश्वास करते हैं । धर्म और दर्शन – दोनों मानवीय ज्ञान की यथार्थता में पूर्ण विश्वास करके चलते हैं । धर्म और दर्शन में मूल साम्य यह है, कि दोनों चरमतत्त्व में ( आत्मा में ) विश्वास करते हैं । दर्शन यदि बौद्धिक भूख को शान्त करता है, तो धर्मं आध्यात्मिक भूख को शान्त करता है | दर्शन सिद्धान्त की ओर जाता है, तो धर्म व्यवहार की ओर जाता है। धर्म का आधार श्रद्धा है, तो दर्शन का आधार तर्क है ।
आज के युग में एक प्रश्न और पूछा जाता है - धर्म और दर्शन का जन्म ia से हुआ ? इस प्रश्न के सम्बन्ध में यहाँ पर संक्षेप में, इतना ही लिखना पर्याप्त होगा, कि मनुष्य के मन और मस्तिष्क के साथ ही धर्म और दर्शन का जन्म होता है । कभी हो, इतना सत्य है, कि दोनों एक-दूसरे को छोड़ कर कभी नहीं रह सकते ? धर्म के अभाव में दर्शन अधूरा है, और दर्शन शून्य धर्म भी अधूरा ही रहेगा । मानव जीवन को सुन्दर और मधुर बनाने के लिए दोनों की समान भाव से आवश्यकता है ।
प्रस्तुत पुस्तक " धर्म और दर्शन" में मानव जीवन की मुख्य- शुख्य समस्याओं पर विस्तार के साथ में विचार किया गया है। भाषा सुन्दर है, भाव गम्भीर है और शैली आकर्षक है । प्रत्येक विषय को प्राचीन ग्रन्थों के उद्धरणों से परिपुष्ट किया गया है । विचारशील पाठकों के लिए यह ग्रन्थ बहुत ही उप
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