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स्याद्वाद क्या है ?
दार्शनिक जगत् को जैन दर्शन ने जो मौलिक एवं असाधारण देन दी है, उसमें अनेकान्तवाद का सिद्धान्त सर्वोपरि है । अनेकान्तवाद जैन परम्परा की एक विलक्षण सूझ है, जो वास्तविक सत्य का साक्षात्कार करने में सहायक है । अनेकान्त का प्रतिपादक वाद स्याद्वाद कहलाता है ।
स्याद्वाद
'स्याद्वाद' पद में दो शब्द हैं- स्यात् और वाद । 'स्यात्' शब्द तिङन्त पद जैसा प्रतीत होता है, किन्तु वास्तव में यह एक अव्यय है जो "कथंचित्, किसी अपेक्षा से, प्रमुक दृष्टि से इस अर्थ का द्योतक है' | 'वाद' शब्द का अर्थ सिद्धान्त, मत या प्रतिपादन करना होता है।
इस प्रकार स्याद्वाद पद का अर्थ हुआ - सापेक्ष - सिद्धान्त, अपेक्षावाद, कथंचित्वाद या वह सिद्धान्त जो विविध दृष्टि बिन्दुओं से वस्तुतत्त्व का निरीक्षण-परीक्षण करता है ।
१. स्यादिति शब्दो अनेकान्तद्योती प्रतिपत्तव्यो न पुनविधि विचार प्रश्नादिद्योती, तथा विवक्षापायात् ।
- प्रष्टसहस्त्री पु० २९६
सर्वथात्वनिषेधकोऽनेकान्तताद्योतकः कथञ्चिदर्थे स्याच्छन्दो निपातः ।
- पञ्चास्तिकाय टीका, श्री अमृतचन्द्र
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