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कर्मवाद : पर्यवेक्षण
मन में से श्वानवृत्ति को हटाकर सिंह वृत्ति जागृत की है । कर्मवाद की महत्ता के सम्बन्ध में एतदर्थ ही डाक्टर मेक्समूलर ने कहा है
"यह तो निश्चित है कि कर्ममत का असर मनुष्य जीवन पर बेहद हुआ है। यदि किसी मनुष्य को यह मालूम पड़े कि वर्तमान अपराध के सिवाय भी मुझको जो कुछ भोगना पड़ता है, वह मेरे पूर्व जन्म के कर्म का ही फल है, तो वह पुराने कर्ज को चुकाने वाले मनुष्य की तरह शान्त भाव से उस कष्ट को सहन कर लेगा और वह मनुष्य इतना भी जानता हो कि सहनशीलता से पुराना कर्ज चुकाया जा सकता है तथा उसी से भविष्य के लिए नीति की समृद्धि इकट्ठी की जा सकती है तो उसको भलाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा आप ही आप होगी। अच्छा या बुरा कोई भी कर्म नष्ट नहीं होता, यह नीतिशास्त्र का मत और पदार्थ शास्त्र का बल-संरक्षण सम्बन्धी मत समान ही है । दोनों मतों का प्राशय इतना ही है कि किसी का नाश नहीं होता । किसी भी नीतिशिक्षा के अस्तित्व के सम्बन्ध में कितनी ही शंका क्यों न हो पर यह निर्विवाद सिद्ध है कि कर्ममत सबसे अधिक जगह माना गया है। उससे लाखों मनुष्यों के कष्ट कम हुए हैं और उसी मत से मनुष्यों को वर्तमान संकट झेलने की शक्ति पैदा करने तथा भविष्य जीवन को सुधारने में उत्तेजन मिला है । २१०
जो सत्य के अन्वेषी सुधी और धैर्यवान् पाठक हैं उन्हें यह सत्य - तथ्य अनुभव हुए बिना नहीं रहेगा कि भारतीय दर्शन का कर्मवाद सिद्धान्त अद्भुत अनन्य और अपराजेय है । इस वैज्ञानिक युग में भी यह एक चिरन्तन ज्योति के रूप में मानव मात्र के पथ को आलोकित कर सकता है ।
२१०. दर्शन और चिन्तन, द्वि० खण्ड पृ० २१६ ।
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