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________________ उत्तम पुरुषों की कथाएँ ८३ विश्वकर्मा, स्रष्टा आदि विविध नामों से भी पुकारे जाते हैं। आवश्यकनियुक्ति में लिखा है कि जब भगवान् एक वर्ष से कुछ कम के थे तब पिता की गोद में बैठे हए शकेन्द्र के हाथ से इक्ष लेकर खाने इच्छा व्यक्त की, तो शक्रेन्द्र ने उनके वंश को 'इक्ष्वाकुवंश' के नाम से अभिहित किया। सर्वप्रथम इसी वंश की स्थापना हुई। आचार्य जिनसेन ने लिखा है-ऋषभदेव के समय इक्षु-दण्ड अपने आप पैदा होते थे किन्तु लोग उसका उपयोग करना नहीं जानते थे। ऋषभदेव ने रस निकालने की विधि बताई, इसलिए वे 'इक्ष्वाकु' कहलाये ।। यौगलिक काल में भाई और भगिनी ही पति-पत्नी के रूप में परिवर्तित हो जाया करते थे। सुनन्दा के भ्राता की अकाल में मृत्यु हो जाने से नाभि ने ऋषभदेव सहजात सुमंगला और सुनन्दा का पाणिग्रहण ऋषभदेव के साथ करवाकर एक नई व्यवस्था स्थापित की। आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है-ऋषभदेव ने लोगों में विवाह-प्रवृत्ति चालू रखने के लिए विवाह किया। आचार्य जिनसेन ने सुमंगला के स्थान पर 'नन्दा' का नाम दिया है। सुनन्दा ने बाहुबली और सुन्दरी को जन्म दिया और सुमं. गला ने भरत, ब्राह्मी आदि निन्यानवें पुत्रों को जन्म दिया। पद्म पुराण में ऋषभदेव की 'यशस्वती' रानी से भरत का जन्म हुआ, ऐसा लिखा है ।' श्वेताम्बर परम्परा में ऋषभदेव के सौ पुत्र तथा दो पुत्रियाँ, इस तरह एक सौ दो सन्तान मानी हैं तो दिगम्बर परम्परा में एक सौ तीन सन्तान मानी हैं। १. विधाता विश्वकर्मा च स्रष्टा चेत्यादिनामभिः । प्रजास्तं व्याहरन्ति स्म, जगता पतिमच्युतम् ॥-महापुराण १६/२६७/३७०. २. (क) सक्को वसठ्ठवणे इक्बु अगू तेण हुन्ति इक्खागा। -आवश्यकनियुक्ति, १८६. (ख) आवश्यकचूणि-१५२. ३. आकानाच्च तदिक्ष णां रससंग्रहणे नृणाम् । इक्ष्वाकुरित्यभूद् देवो जगतामभिसम्मतः ॥ -महापुराण १६/२६४. ४. आवश्यकनियुक्ति, १५१-१९३. ५. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, १/२/८८१. ६. हरिवंशपुराण, ६/१८. ७. पद्मपुराण-रविषेणाचार्य, २०/१०४. ८. महापुराण, १६/३४६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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