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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
पुरुष चरित्र आदि में विस्तार से घटनाओं के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है । इससे यह स्पष्ट है कि जीवन-प्रसंग धीरे-धीरे अधिक विकसित हुए हैं।
आवश्यकनियुक्ति और आवश्यकचुणि के अनुसार जब ऋषभदेव गर्भ में आये थे तब माता ने ऋषभ का स्वप्न देखा था और जन्म के पश्चात् शिशु के उरु स्थल पर ऋषभ का लांछन भी था, इसलिए उनका गुणनिष्पन्न नाम ऋषभ रखा। श्रीमद्भागवत् के अनुसार उनके सुन्दर शरीर, विपुल कीर्ति, तेज, बल, ऐश्वर्य, यश, पराक्रम आदि सद्गुणों के कारण नाभि ने उनका नाम ऋषभ रखा । आचार्य जिनसेन' ने ऋषभदेव के स्थान पर 'वषभदेव' लिखा है। वष कहते हैं श्रेष्ठ को, भगवान् श्रेष्ठ धर्म से शोभायमान थे, इसीलिए उन्हें 'वृषभ स्वामी' के नाम से पुकारा गया है। वे धर्म और कर्म के आद्य निर्माता थे, इसीलिए आदिनाथ के नाम से भी खे विश्रत रहे हैं। आचार्य जिनसेन और आचार्य समन्तभद्र ने उनका एक गुण निप्पन्न नाम 'प्रजापति' लिखा है। जब वे गर्भ में आये तब हिरण्य की वृष्टि हुई, इसलिए उनका एक नाम 'हिरण्यगर्भ' भी है। इक्ष रस का पान करने के कारण वे 'काश्यप' भी कहलाये । इसके अतिरिक्त वे विधाता,
१. त्रिषष्टि लावापुरुष चरित्र-हेम चा द्राचार्य, प्रा आरमानन्द सभा, भावनगर २. आवश्यक निर्या वित, १६२/१ ३. उस्सु उसभलंधणं उसभो सुमिणमि तेण कारणेण उसभोत्ति णामं वयं ।
--आवश्यकचूणि, पृ० १५१ ४. श्रीमद्भागवत, ५/४/२, प्र० खण्ड, गोरखपुर संस्करण ३, पृ० ५५६ । ५. महापुराण, १३/१६०-१६१ । ६. महापुराण, १६०/१६/३६३ । ७. प्रजापतिर्यः प्रथमं जिजीविषुः शशास कृप्यादिषु कमसु प्रजा: । प्रबुद्धतत्त्व: पुनरद्भुतोदयो, ममत्वतो निविविद विदाम्बरः ॥
-बृहत्स्वयम्भूस्तोत्र ८. महापुराण; पर्व १२/६५. ६. (क) कासं-उच्छ्, तरय विकारो कास्य:-रसः सो जरस पाण सो कासवो -उसभस्वामी।
-दशवकालिक अगस्त्यसिंह चूर्णि (ख) काश्यमित्युच्यते तेजः काश्यपस्तस्य पालनात् ।
-महापुराण १६/२६६, पृ० ३७०.
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