SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा यौगलिक युग में शासन एवं नीति व्यवस्था हम यह पूर्व ही बता चुके हैं कि यौगलिक काल में मानव स्वयं शासित था, उसमें किसी भी प्रकार की उच्छंखलता नहीं थी और ज्योंज्यों उच्छृखलता बढ़ती गई, त्यों-त्यों 'हाकार', 'माकार' और 'धिक्कार' नीति का विकास हुआ और वह धिवकार नीति ऋषभदेव तक चलती रही। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में ऋषभदेव को पन्द्रहव कुलकर माना है साथ में प्रथम राजा के रूप में भी उल्लेख किया गया । नाभि कुलकर थे और उनकी उपस्थिति मे ही वे राजा बने, इसीलिए ऋषभदेव ने कुलकर पद को ग्रहण नहीं किया होगा, यह स्पष्ट है । क्योकि एक ही स्थान पर दो कुलकर नहीं हो सकते। फिर यहाँ जो उल्लेख हुआ है, वह हमारी दृष्टि ने लिकर की भाँति कार्य करने से ऋषभदेव कुलकर कहलाये होंगे। वह संक्राति काल था। प्राचीन मर्यादाएँ विच्छिन्न हो रही थीं, यौगलिकों ने घबराकर उस स्थिति पर नियन्त्रण करने हेतु ऋषभदेव से प्रार्थना की। ऋषभदेव ने कहा-आप नाभि कुलकर से निवेदन करें, वे आपको राजा प्रदान करेंगे। जो इस सारी स्थिति को नियन्त्रित कर सुव्यवस्था करेंगे। यौगलिकों की प्रार्थना पर नाभि कुलकर ने ऋषभदेव का राज्याभिषेक कर राजा घोषित किया । राज्य की सुव्यवस्था के लिए आरक्षक दल की स्थापना की, जिसके अधिकारी 'उग्र' कहलाये । मंत्रिमण्डल बनाया, जिसके अधिकारी 'भोग' के नाम से प्रसिद्ध हए । सम्राट के पास रहने वाले और परामर्श देने वाले 'राजन्य' कहलाये तथा अन्य कर्मचारी क्षत्रिय' के नाम से पहचाने गये। दुष्टों के दमन तथा प्रजा व राज्य के संरक्षणार्थ चार प्रकार की सेना व 'सेनापतियों' की व्यवस्था की गई। गज, अश्व, रथ, पादातिक, चतुर्विध १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार २, सू०२६-३०. २. नीतीण अइक्कमणे निवेयणं उसभसामिस्स । -आवश्यकनियुक्ति मलयगिरी, १६३. ३. आवश्यकचूणि, पृ० १५३.१५४. ४. (क) आवश्यकनियुक्ति मलय गिरी वृत्ति, १६८/१९५/१. (ख) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, १/२/९७४/६७६. ५. त्रिषण्टि० १/२/६२५-६३२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy