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________________ जैन आगम एवं व्याख्या साहित्य के अन्तर्गत : उत्तम पुरुषों की कथाएँ भगवान ऋषभदेव भगवान् ऋषभदेव भारतीय संस्कृति के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। जिनकी गौरव गाथाओं का उल्लेख जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परम्पराओं में गाया गया है । वे विश्व-वन्द्य महापुरुष थे । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, कल्प सूत्र आदि में उनके जीवन के कुछ स्रोतों पर प्रकाश डाला है। भगवान् ऋषभ को कुलकर भी माना है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में वे पन्द्रहवें कुलकर हैं और प्रथम तीर्थंकर हैं । प्रथम राजा, प्रथम केवली और प्रथम धर्मचक्रवर्ती हैं, इसलिए उनकी जीवन गाथा यहाँ सर्वप्रथम दी जा रही है। तीर्थंकरों का प्रत्येक महत्त्वपूर्ण कार्य कल्याणक है । कल्पसूत्र में पाँच कल्याणक माने गये हैं, अतः सर्वप्रथम कल्याणकों का उल्लेख है । जन्मोत्सव मनाने के लिए छप्पन महत्तरिका दिशाकुमारियाँ और चौंसठ इन्द्र आते हैं । सबसे पहले अधोलोक में अवस्थित “भोगंकरा" आठ दिशाकुमारियाँ सपरिवार आकर मरुदेवी को नमन कर निवेदन करती हैं हम जन्मोत्सव मनाने आई हैं । आप भयभीत न बनें । धूल और दुरभिगंध आदि को दूर कर एक योजन तक का समस्त वातावरण परम सुगन्धमय बनाती हैं तथा गीत गाती हईं मरुदेवी के चारों ओर खड़ी हो जाती हैं। उसके पश्चात् ऊर्ध्वलोक में रहने वाली 'मेघंकरा' आदि दिक्कुमासुगंधित जल की वष्टि करती हैं और दिव्य धूप से एक योजन के परिमण्डल को देवों के आगमन योग्य बना देती हैं। मंगल गीत गाती हुईं मरुदेवी के सन्निकट खड़ी हो गई। उसके बाद रुचक कूट पर रहने वाली नन्दुत्तरा आदि दिक कूमारियाँ हाथों में दर्पण लिए आती हैं, दक्षिण के रुचक पर्वत पर रहने वाली "समाहारा" आदि दिककुमारियाँ अपने हाथों में झारियाँ १. उसह-चरियं, धम्मकहाणुओगे, पढस खंधे ( ७७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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