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________________ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा प्राकृत में 'णाभि' का रूपान्तर है । वे अपने तेजस्वी व्यक्तित्व के कारण ईश्वर के के रूप में जनता के आदर- पात्र बने थे । दूत ७० नाभि का अपर नाम 'अजनाभ' भी मिलता है, उन्हीं के नाम के आधार पर आर्यखण्ड को 'नाभिखण्ड' या 'अजनाभ वर्ष' कहा है । स्कन्दपुराण में 'हिमाद्रि जलधेरन्तर्नाभि-खण्डमिति स्मृतम्' पद आया है । 1 डा० अवध बिहारीलाल अवस्थी ने लिखा है - जम्बूद्वीप के नौ वर्षों में से हिमालय और समुद्र के बीच में स्थित भूखण्ड को आग्नीध्र के पुत्र नाभि के नाम पर ही नाभि खण्ड कहा गया है । नाभि का अपर नाम अजनाभ था, जिससे इस खण्ड का नाम 'अजनाभ वर्ष' हुआ । इस सम्बन्ध में डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने लिखा है - 'स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र नाभि, नाभि के पुत्र ऋषभ और ऋषभदेव सौ पुत्र हुए, जिनमें भरत ज्येष्ठ थे । यही नाभि अजनाभ भी कहलाते थे जो अत्यन्त प्रतापी थे और जिनके नाम पर यह देश 'अजनाभ वर्ष' कहलाता था । 3 श्रीमद्भागवत में लिखा है 'अजनाभ वर्ष ही आगे चलकर " भारतवर्ष” इस संज्ञा से अभिहित हुआ । अतीत अनागत कुलकर जैन आगमों में अतीत उत्सर्पिणी और अतीत अवसर्पिणी कुलकरों का उल्लेख हुआ है । स्थानांग में अतीत उत्सर्पिणी के दश कुलकर बताये हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं - १. स्वयंजल २. शतायु ३. अनन्तसेन ४. अमितसेन ५. तर्कसेन ६. भीमसेन ७ महाभीमसेन ८. दृढ़रथ ६. दशरथ १०. शतरथ । जबकि समवायांग में अतीत उत्सर्पिणी के केवल सात ही कुलकर गिनाये हैं । जो इस प्रकार हैं - १. मित्रदामा २. सुदामा ३. सुपार्श्व १. स्कन्दपुराण - १/२/३७-५५. प्राचीन भारत का भौगोलिक स्वरूप, प्रका० कैलाश प्रकाशन, लखनऊ, सन् १६४, पृ० १२३, परिशिष्ट - २. ३ मार्कण्डेय पुराण: सांस्कृतिक अध्ययन - डा० वासुदेवशरण अग्रवाल, पाद टिप्पण सं० १, पृ० १३८. ४. अजनाभं नामैतवर्ष भारतमिति यत् आरभ्य व्यपदिशन्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only - श्रीमद्भागवत, ५ / ७/३. www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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