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________________ जैन आगमों की कथाएँ ६६ महापुराण में जिनसेन ने लिखा है-ये चौदह ही कुलकर पूर्वभव में महाविदेह क्षेत्र में उच्च कुलीन महापुरुष थे । इनमें से कितने ही कुलकर जाति-स्मरण ज्ञान के धारक थे और कितने ही अवधिज्ञान के धारक थे । इसलिए उन्होंने अपने ज्ञान बल से उपर्युक्त कार्य करने का आदेश दिया। अन्तिम कुलकर नाभिराय अन्य कुलकरों में नाभिराय अधिक प्रतिभासम्पन्न थे । श्रीमद्भागवतकार ने उन्हें आदि मनु स्वायम्भुव के पूत्र प्रियव्रत और प्रियव्रत के आग्नीध्र तथा आग्नीध्र के नौ पूत्रों में ज्येष्ठ माना है।1 नाभिराय ने अपने विशिष्ट ज्ञान से जो भी प्रश्न आये, उसका समाधान किया । वे जन-जन के त्राणकर्ता थे, इसलिए उन्हें क्षत्रिय कहा गया । आगे चलकर क्षत्रिय शब्द नाभि के अर्थ में ही रूढ़ हो गया। अमरकोशकार ने 'क्षत्रिये नाभिः' लिखा है । अभिधान चिन्तामणि में भी आचार्य हेमचन्द्र ने 'नाभिश्च क्षत्रिये' लिखा है। मेदिनीकोश में लिखा है कि चक्र के मध्य भाग में जैसे नाभि मुख्य है वैसे ही क्षत्रिय राजाओं में नाभि मुख्य थे। आचार्य जिनसेन ने तो नाभि के गुणों का उत्कीर्तन करते हुए लिखा है-वे चन्द्र के सदृश अनेक कलाओं के आधार थे, सूर्य के समान तेजस्वी थे, इन्द्र के समान वैभवसम्पन्न थे और कल्पवृक्ष के समान मनोवांछित फल प्रदान करने वाले थे । अरबी में एक शब्द 'नवी' है, जिसका अर्थ है'ईश्वर का दूत', पैगम्बर' और 'रसूल'। यह शब्द संस्कृत में नाभि और १. प्रियव्रतो नाम सुतो मनो: स्वायम्भुवस्य यः । तस्याग्नीध्रस्त तो नाभिः ऋषभस्तत्सुतः स्मृतः ।। –भागवतपुराण, ११/२/१५, २. अमरकोष, ३/५/२०. ३. अभिधान चिन्तामणि, १/३६. ४. नाभिमुख्य नपे चक्रमध्यक्षत्रियोरपि । - मेदिनी कोष भ० वर्ग ५. ५. शशीव स कलाधार: तेजस्वी भानुमानिव । प्रभु शक्र इवाभीष्टफलद: कल्पशाखिवत् ।। -महापुराण, १२/११. ६ 'उर्दू-हिन्दी कोश' सम्पादक-रामचन्द्र वर्मा, प्रका० हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, चतुर्थ संस्करण, अगस्त १६५३, पृ० २२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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