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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
समय सरक रहा था और उसके प्रभाव से परिवर्तन आ रहा था । पहले भी जंगलों में व्याघ्र आदि पशुगण थे किन्तु उनमें क्रूरता नहीं थी, वे सौम्य स्वभाव के थे । पर समय ने उनमें भी क्रूरता पैदा की और वे मानवों को संत्रस्त करने लगे । क्षेमंकर ने मानवों को कहा- इन पशुओं का विश्वास न करो तथा समूह बनाकर रहो, जिससे वे तुम लोगों को कष्ट नहीं दे सकें । इसलिए वह तृतीय कुलकर के रूप में प्रसिद्ध हुआ 1
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चतुर्थ कुलकर 'क्ष'मंधर' ने जब पशु अधिक क्रूर बनकर मानवसमूह पर हमला करने लगे तो उसने कहा - पशुओं से बचने के लिए दण्ड आदि अपने पास रखो, जिससे वे सहसा आक्रमण न कर सकें। इसलिए वह कुलकर कहलाया ।
पाँचवें कुलकर 'सीमंकर' के समय कल्पवृक्ष अल्प मात्रा में फल देने लगे, जिससे सभी मानवों को पूर्ति नहीं हो पाती थी । वे एक-दूसरे के वृक्ष पर अपना स्वामित्व स्थापित करने का प्रयास करने लगे । सीमंकर ने कहा - यों संघर्ष करने से समाधान नहीं होगा । समाधान का सही तरीका यही है कि सीमा का निर्धारण करलो । सीमा निर्धारण करने से संघर्ष मिट गया और वह कुलकर के रूप में विश्रुत हुआ ।
इन पाँचों कुलकरों ने भोग-युग के समाप्त होने तक और कर्मयुग के आगमन की पूर्व सूचना देने के कारण अपने युग के मानवों को 'तदनुकूल जीवन बिताने की प्रेरणा दी, जो कोई भी व्यक्ति नीति का उल्लंघन करते तो ये 'हा तुमने यह काम किया' यह 'हाकार नीति' अपनाते, जिससे अपराधी पानी-पानी हो जाता । उसे अपनी भूल का परिज्ञान होता
छठे कुलकर 'सीमंधर' ने जब कल्प वृक्षों के स्वामित्व को लेकर परस्पर संघर्ष होने लगा तब वृक्षों को चिह्नित कर संघर्ष का अन्त किया, इसलिए वह कुलकर कहलाया ।
सातवें कुलकर का नाम 'विमलवाहन' है । आवश्यक निर्युक्ति' और त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र' में विमलवाहन के सम्बन्ध में एक प्रसंग हैएक बार एक युगल वन में इधर-उधर परिभ्रमण कर रहा था, एक विराटकाय श्वेत हाथी सामने आया । उस युगल ने उसे बहुत ही स्नेह से निहारा ।
१. आवश्यक निर्युक्ति, पृ० १५३.
२. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १ / २ / १४२ - १४७.
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